एक अधूरी नज़्म-
शहर की उस तंग गली में अब भी,
मकाँ है मेरे पुरखों का,
बीता था जहां पे बचपन,
जहाँ लड़कपन गुज़रा था,
उस घर के एक छोटे कमरे में,
मेरी यादें रहती हैं,
कभी ये दिल जब कहता है,
चल उस से मिलने चलते हैं,
जिस कमरे में आता था सूरज,
जहाँ वो शामें रहती थीं,
उस कमरे के दर पे मुझको,
बस अब ताले मिलते हैं,
उन भूली बिसरी यादों से,
जब कभी मैं मिलने जाता हूँ,
उन यादों के किरदारों में
खुद को तनहा पाता हूँ।-
यूं तो मुद्दातें गुज़ार दी हैं मैंने तेरे बग़ैर भी मगर आज भी तेरी यादों का एक झोंका मुझे टुकड़ों में बिखेर देता है..!
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मुझे घर मिला तेरी यादों मे
और पता है ?
तुम वही "आवारा" हो मेरी कहानी के-
बहुत ख्वाहिश है जीने की क्यूं फिर मर रहा हूं मैं,
तबाह खुद को बड़े ही शौक से अब कर रहा हूं मैं,
खुदी की क़ैद में हूं मैं, खुदी सैय्याद हूं मेरा,
ये कैसी कैफियत में हूं, खुदी से डर रहा हूं मैं।-
उसका दिल और घर दोनों के दरवाजे बंद है
यूँ ही नहीं लोग मुझे आशिक आवारा कहते-
मै आवारा हूं और आवारा सा लिखता हूं
बंदिशों से मुक्त ,अहसासो को शब्दों मे पिरोता हूं
हर बार उसे लिखता हूं पर व्यंग की शब्दों से उसे दुनिया से छिपाता हूं
हजार सवाल है मन में मेरे और अब बस सवाल ही लोगो से बांटता हूं
हां,मै आवारा हूं और आवारा सा लिखता हूं।।
-bebak_poetry
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तूने रंग बदला है , मै रास्ता बदल लूंगा
तूने रूप बदला है, मै फितरत बदल लूंगा
तूने इरादा बदला है, मै किरदार बदल लूंगा
ऐसे ही नहीं कहते सब आवारा मुझे
तूने प्यार बदला है, मै दुनिया बदल लूंगा
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कागज की कश्ती थी ,पानी का
किनारा था।
खेलने की मस्ती थी ,दिल भी ये
आवारा था।
कहाँ आ गए इस समझदारी के
दल दल में,
वो नादान बचपन भी कितना
प्यारा था।
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मुझे आदत नही यूँ हर किसी पे, मर मिटने की...........
पर तुझे देख कर दिल ने, सोचने तक की
मोहलत ना दी............।।-
यूं बंदिशे लग जाती है बेटियों पर उम्र भर की
बस कुछ आवारा लडको के कुछ कहने भर से-