Napowrimo..20/30
"प्रतिध्वनि"
भरभराते खाली खंडहरों में आवाज
जाकर फिर वापस लौट आती है,
सूनेपन का अहसास देकर हवाओं
में खो जाती है,
हरे कागज के टुकड़ों में बिकती है
लाचारी ,कोइ और रास्ता ना देख
रंग बदलती है ईमानदारी,
घर नहीं दिल नहीं,सिर्फ बाजार है,
जीवन का ढ़ंग भी कारोबार है,
इच्छाओं के बोझ ने किताबों को
दबा दिया और आत्मा खंडहर में
बैठी है विवश बस अपनी प्रतिध्वनि
सुनने को, बिना पाप किये सहती
है एक अंतहीन शाप,नहीं बसती
यहां आदान की दुनिया,आबाद तो
केवल व्यापार है एक दिन इस तरह
चले जायेंगे ,नहीं लौटेंगे फिर हम
प्रतिध्वनि बनकर..
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प्रेम का इत्र लगाकर
नज़रों से बस इज़हार करो
ज़िस्म की चाहत में तुम
मत किसी से प्यार करो-
कोई बुलाए न बुलाए
मैं सबको बुला लेता हूँ
दुनिया देती है गम कितने
मैं सब हँसकर भुला देता हूँ-
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Enough Is Nothing
But...
Should Be
Say... ENOUGH TO
Difficulties
Sadness
Failure
Clash
Fear
Say... ENOUGH TO
Everything Which Is
NEGATIVE-
Take some time to cleanse your space of the ghosts from past..
When one door closes, another one opens.
When one door gets slammed in your face, it's time to break down another.
It may be time to rearrange goals.
Don't give up, just regrouping.
The stars are starting to align, and things are looking up.
Follow their gaze!-
है या
यही है मेरी पूरी कहानी,
प्यार ने तेरे शुरू कर दी है
करनी मनमानी,
ख़ुद पर ही अब
रहा नहीं मेरा क़ाबू ,
बेचैन हूँ इस कद्र
ख़ुद को कैसे सम्भालूँ ,
प्यार है ये या
फिर है कोई जादू ,
खो गई हूँ तेरे प्यार में,
कैसे ख़ुद को पहचानूँ ,
लगने लगी है अब तो
तेरी हर शय सुहानी,
पढ़ने लगी हैं आँखें मेरी
तेरे प्यार को ज़ुबानी।-
फ़िल्हाल उन्हें वक़्त दे रहा हूँ
जानने कि कोशिश कर रहा हूँ
हैं थोड़ी जिद्दी और मनचली
उसमें अब मैं ख़ुद को ढूँढ रहा हूँ
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