Smoking is healthiest , only when it is in context of smoking out sadness which at the end leaves the residue of briskness and ecstasy..
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कमरे में जलती हुयी एक अंगीठी रख ली है
तेरे लिखें हुए नफ़रत वाले ख़त अब हमसे पढ़े नही जाते है
#कड़वी_भावनाये
#Psycho_Writer✍️
#Мя_NiЯwAnDaЯ ★★★-
कब जली हूं बता वेदना के लिए
फूल भी झड़ गये संग परिहार के
गीत मिटने लगे प्रीत मनुहार के
घूंट मन ने उमर भर लहू के पिए
कब जली हूं
दिन ढ़ला सांझ भी डूबने को चली,
रात के भी हृदय में मची खलबली
मूक सी कल्पना घूंट कितना पिए
कब जली हूं......
गीत में प्रीत की सब घुली रागिनी
सांस के तार गिनती विरह यामिनी
भाव की श्रृंखला एक जीवन जिए
कब जली हूं....
एक अरसे निभाते रहे रात दिन,
मौन की साधना हर घड़ी प्रीत बिन।
व्यर्थ जलते रहे आस के नित दिए,
कब जली हूं....
ये समर्पण वृथा अनवरत चल रहा,
भान होता नहीं नित्य मन जल रहा।
प्रेम पलता रहा मुस्कुराहट लिए,
कब जली हूं....
प्रीति
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टूट कर लग रहा था बिखर जाएँगे
हम भी साबित बचे तो किधर जाएँगे
जब तलक साँस चलती रहे ख़ुश रहें
आज ज़िंदा हैं कल हम भी मर जाएँगे
राह फूलों की उनके मुक़द्दर में है
हमको काँटे मिलेंगे जिधर जाएँगे
वक़्त अच्छा हमारा भी आ जाएगा
ये बुरे दिन भी यूँ ही गुज़र जाएँगे
ज़ख़्म सारे हरे के हरे हैं अभी
वक़्त के साथ लगता था भर जाएँगे
सारे दुश्मन हमारे बरी हो गए
अब तो इल्ज़ाम यारों के सर जाएँगे
चार दिन के लिए आ गए थे यहाँ
यार 'सालिक'चलो अपने घर जाएँगे-
"Climb (चढ़ना)"
सफलता की सीढ़ियां वही चढ़ता है जो परिश्रम में विश्वास रखता है।
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रख दिया है मुझे आग के सामने
जानता है बदन काग़ज़ी है मेरा
رکھ دیا ہے مجھے آگ کے سامنے
جنتا ہے بدن کاغذی ہے میرا-
समर्पण का..
कठिनाइयों से लड़ने का नाम जिंदगी है,
आज में जीने का नाम ही जिंदगी है,
जिंदादिली का नाम ही जिंदगी है,
निरंतर बढ़ते रहने का नाम जिंदगी है,
सत्कर्मों में आगे बढ़ने का नाम जिंदगी है,
दुख में भी मुस्कुराने का नाम जिंदगी है,
रोते को हंसाना, गिरते को उठाने का नाम जिंदगी है,
विशमताओं में सक्षम रहने का नाम जिंदगी है..।
--"उमा"-
छत नहीं है मयस्सर तो क्या सर पे इक आसमाँ तो मिला
ख़ुश रहो शह्र में अब तुम्हें कहने को इक मकाँ तो मिला
बोलता वो भी अब कुछ नहीं बोलने से भी क्या फ़ायदा
मैं यही सोचकर ख़ुश हुआ और इक हमज़बाँ तो मिला
देख ज़ख़्मी मुझे राह में देर तक देखता ही रहा
आज सूनी डगर में यहाँ फिर कोई ना-तवाँ तो मिला
छोड़ कर अपने माँ - बाप को राजधानी में ही बस गए
आज छोटे नगर में मुझे फिर से इक नौजवाँ तो मिला
बस यही सोचकर आजकल तैरते हैं हवा में सभी
क्या हुआ ग़र ज़मीं ना मिली पर हमें आसमाँ तो मिला
मैं सफ़र में अकेला नहीं भाइयों ये अलग बात है
मुझको शामिल नहीं कर रहे राह में कारवाँ तो मिला
जब तलक साँस चलती रही ढूँढता ही रहा मैं सुकूँ
जिस्म जैसे ही ठंडा हुआ आज उसका निशाँ तो मिला-
आज हालात कैसे भी हों उनको तो बस यही चाहिए
दर्द मिलते रहें ग़ैर को उनके हिस्से ख़ुशी चाहिए
आदमी की है सीरत बुरी एक जुगनू अगर मिल गया
तो अमावस भले हो मगर इक अदद चाँद भी चाहिए
तिश्नगी ने हमें धूप में है परेशाँ किया इस क़दर
चुल्लू भर हमको पानी नहीं एक पूरी नदी चाहिए
है अजीबो-गरीब शख़्स वो,है जुदा उसकी फरमाइशें
साँस लेता हुआ क़ब्र में इक नया आदमी चाहिए
सुब्ह है इक नयी कश्मकश कोई समझाइए अब उन्हें
दूध लाकर तो देते नहीं शाम को पर दही चाहिए
बाद मुद्दत वो आये तो हैं एक बीमार को देखने
है अयादत बहाना मगर उनको जाँ ही मिरी चाहिए
शम्स का मैं यहाँ क्या करूँ,महलों में ही जगह दो इसे
इक दीया हमको दे दीजिए , इतनी-सी रौशनी चाहिए
हैं जो सड़कें यहाँ पर सभी सिर्फ़ तेरे लिए ही तो है
ये नहीं है मिरे वास्ते मुझको बस इक गली चाहिए-
लिखना शुरू करने से पहले
पूरी सोच चैलेंज पर ही होती
है, बाद में सही लिख पाते हैं
कहा भी गया है कि....
"सोचो, समझो और फिर लिखो"-