#03-07-2021 # काव्य कुसुम # हादसे #
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सियासत की चाँदनी किसी घर की अंधेरी रातों को रोशन कर नहीं सकती।
होता है जब भी कोई हादसा तो मुआवजे की ललाई जख़्म भर नहीं सकती।
सियासत ही संवेदनशील हो तो हादसों से सबक लेकर हादसों की पुनरावृत्ति न होने दे-
जब हादसे पर हादसे होते ही रहते हैं तो संवेदना कभी मर नहीं सकती।
============== गुड मार्निग ==========-
On lonely nights
like these,
I crave
for a tempest.
all that embraces me
is the deadly
calm.
// stillness //-
Unn hawaaon ka sahaara lekar
Unn badalon ka sahaara lekar
Duniya ki iss bheed me
Nazro ki uss ummid me-
Kya kashur thi meri
Itna kyu rulati ho,
Dil lagake sath me
Wafa b karte ho.
Kuch pane se jyada
Ab ta jyada khone ki dar hai,
Os ki tarah kese khudko
Itna gira deti ho.
-
चेहरे पर तेरे
रौनक आज फिर वही है..
तस्सव्वुर है,
कि अब किस बात पर
कल रात भीगी होंगी ये आँखें तेरी
छुपाने को जिन्हें
फिर वही तूने जो
मुस्कराहट का ढोंग रचाया है..
वाकिफ़ हूँ मैं तो हर तरकीब से तेरी
इन झूठे मुखौठों से
अपना तो रिश्ता ही कुछ पुराना है!-
जिंदगी में अगर सुकून भी ढूंढना पड़े
तो इससे बड़ा कोई दर्द नहीं....!!-
ख़ाली जब हाथ लिए शाम को घर जाते हैं
देख कर हमको कई चहरे उतर जाते हैं
आप तो फूलों पे चलने से हिचकते हैं यहाँ
हम तो अंगारों से भी हँस के गुज़र जाते हैं
ऐसे लोगों को कहाँ याद रखेगी दुनिया
सुब्ह ज़िंदा हुए और शाम को मर जाते हैं
आप आते हैं तो माहौल बिगड़ जाता है
आपके जाते ही हालात सुधर जाते हैं
आपके वास्ते सन बाथ वो होगा साहिब
धूप में काम करें हम तो निखर जाते हैं
जो दिखाते हैं हमें राह वो हैं नाबीना
वो जिधर भी कहे हम लोग उधर जाते हैं
यार "सालिक"वो तेरी बात कहाँ मानेंगे
अपनी मर्जी से ही हर काम जो कर जाते हैं-