हर चमकती चीज सोना नहीं होती पर सोने से ज्यादा कीमती हो सकती है।
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सब कुछ तो है तेरे पास, तुझे ये जमाना क्यूँ खलता है।
मिलेगा जो नसीब में है, खुदा का लिखा कहाँ टलता है।
जिंदगी की चुनौतियों से, मुकाबला करो डट कर
खरा होता है वो सोना, जितना आग में जलता है।
ढाल अपने किरदार को जीवन में, कि गूंजे तालियाँ
खोटा सिक्का इस दुनियां में, अब कहाँ चलता है।
थक हार कर यूँ खांमोश, मत बैठ मेरे ए दोस्त
इन अंधेरों के बाद तो, दिन नया निकलता है।
दूध-दही काजू-बादाम, क्या पता उसे "नवनीत"
वो एक गरीब का बच्चा है, मिट्टी में पलता है।-
अगर तुझे,
मेरा होना न था,
तो तेरा मेरे कंधे पे,
सर रख के, सोना न था...-
एकदम से दाम बढ़ गए बेनाम तेरी शायरी के
उसकी वाह-वाह लोहे पर सोने की परत हो जैसे-
एक सख्स है मेरी जिन्दगी में
जो मेरा ख्याल बच्चों सा करता है,
मैं अगर दुखी रहूं तो,
वो मुझे खुश करने के अनेकों
प्रयास करता है,
अच्छा लगता है मुझे उसके पास रहना,
उसका गुस्सा भी प्यार सा
मीठा लगता है,
कदमों से दूर तो हैं सही हम,
पर दिल के ख्याल हमें बेहद
पास करता है,
ये इत्तेफाक तो नहीं बस, हमारा मिलना
कुछ मर्जियां तो खुदा भी बयां करता है,
वो कवि है बेशक , अपनी कविताओं से,
पर कुछ चंद पंक्तियां वो,मेरे लिए
भी लिखा करता है,
मुझे बेहद पसंद है उसका ये अंदाज,
क्योंकि वो मेरे ख्यालों को,
अपने दिल से बांधा करता है..!!
मैं भी एक अदनान सी शायरा ,
मेरी शायरी कि दुनिया में, एक
दुनिया उसके मोहब्बत का भी बसा
करता है..!!
_सोनम साहू
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दिल को मेरे,
अपने ख्यालों से
बांधता था,
मैं जानती थी,कि
वो मेरे सारे
राज जनता था...-
जिशमानी ईश्क नहीं,
ईश्क- ए- रूहानी हूं मैं,
तेरे जिन्दगी के किताब की
चंद पन्नों कि कहानी हूं मै,
यूं तो तेरे जिन्दगी का हिस्सा हूं
पर तेरे लिए अनजानी हूं मैं,
जो तेरे ईश्क में मुझे मिला है,
रातों में चुपके- चुपके,
आंखों से बहता पानी हूं मैं,
तुम दुख देते रहो,
लिखना आसान होगा,
तभी तो कलम- ए- कागज में,
ईश्क जफा होगा,
तुम्हारे दिए गए आसूंओं से,
मेरी कविताओं में इजाफा होगा,
मुझसे दूर जाओगे,
ख़ुद से भाग कर कहां जाओगे,
सांस जो लोगे हर पल तुम
हर सांस मे मुझे पाओगे,
मेरी जिन्दगी के कहानी में ,
तो हो ही अब तुम,
पर तुम्हारे जिन्दगी के कहानी मे भी,
एक आख़िरी पन्ना हमारी होगी..!!
सोनम साहू
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मुझे अब नहीं चाहिए होती किसी
कि मदद संभाल लेती हुं उन प्लेट्स को
अपने कमर में,..मुझे अब आता है उड़ते पल्लू को परत
दर परत अपने, कंधे में व्यवस्थित करना,..
अब तो वो पिन भी मुझे
नहीं चुभता, मै संभाल लेती हूं उस
नुकीली पिन को और अपने जिन्दगी में चुभने वाले
हर दर्द को ,अब हर दुख को
सहना मुझे आने लगा है,मैं पहन लेती हूं,...
नजाकत अपने कानो मे और ओढ़
लेती हूं एक झूंठी मुस्कान को अपने ओठों पर,..
मैं नहीं पहनती कोई पायल
जो बन जाए,मेरे पैरों कि बेड़ियां,
चूड़ियां सिर्फ एक ही हांथ मे ..
खनकती है, दूसरे से मैं अंदाजा लगा लेती हूं,...
आते जाते, अच्छे- बुरे वक्त का मेरे सैंडल के हील से,..
अब मेरे पांव लड़खड़ाते नहीं.
जानते हैं वो मेरे कद और मेरे हौसलों को बढ़ाना...
मैं सीख गई हूं अब, संभालना समेटना,
और सवरना अपनी साड़ी को और खुद को भी...!!
सोनम साहू...
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