क्या पाया किसने इस जग में
समय मात्र बतलाता है
कैकई को था राज्य चाहिए
अपयश भाग्य में आता है
त्याग दिया जब राज्य राम ने
रघुकुल रीत निभाने को
एक व्रती बन वन में तपकर
स्वयं सूर्य बन जाने को-
🚩
|
🔔
राम
रामरामराम
रामरामरामराम
रामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामराम
राम !रामरामराम! राम
राम राम राम
राम 🙏 राम
राम राम राम
राम राम राम
राम राम राम
राम 🙏 राम
राम रामरामराम राम
रामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामरामरामराम
🔔🙏 !! जय श्री राम !!🙏🔔
☆ॐ☆
🙏💥 जय श्री राम 💥🙏
—एक राम भक्त-
🚩।।जय श्री राम।।🚩
____________________
राम भगति मनि उर बस जाकें। दुख लवलेस न सपनेहुँ ताकें।।
चतुर सिरोमनि तेइ जग माहीं। जे मनि लागि सुजतन कराहीं।।
भावार्थ: श्रीरामभक्तिरूपी मणि जिसके ह्ररदयमें बसती है, उसे स्वप्नमें भी लेशमात्र दुःख नहीं होता। जगत् में वे ही मनुष्य चतुरोंके शिरोमणि हैं जो उस भक्तिरूपी मणि के लिये भलीभाँति यत्न करते हैं।।
।।गोस्वामी तुलसीदास जी कृत श्री रामचरितमानस के अंश।।-
त्रिजटा नाम राच्छसी एका
राम चरन रति निपुन विवेका ...✍✍
- पंडितआदित्यशुक्ला ' मानसप्रेमी '-
तब उतारि चूड़ामनि दीन्ही
हरषि समेत पवनसुत लीन्ही ...✍✍
- पंडितआदित्यशुक्ला ' मानसप्रेमी '-
बाजे अवध में बधइया , आए हैं आज रघुरैय्या ।
राम लक्ष्मण भरत शत्रुहन , आए हैं चारो भैय्या ।।
अवधपुरी लागे स्वर्ग से न्यारी, खुशी से नाचे नर और नारी ।
दै दै ताल ताता थैय्या ।।
चारो लाल पलने पर झूलें , राजा दशरथ जी खुशी से झूमें ।
आज मगन तीनो मैय्या ।।
गुरु वशिष्ठ आए नामकरण को, भोले बाबा शुभ दर्शन को ।
जेठे सुत राम रघुरैय्या ।।
विश्वभरण पोषण कर जोई, ताकर नाम भरत अस होई ।
भरत नाम दूजे भैय्या ।।
शेषनाग अवतारी लक्ष्मण, सकल जगत आधारी लक्ष्मण ।
तीजे लक्ष्मण भैय्या ।।
जाके सुमिरन से दुख नासा, नाम शत्रुहन वेद प्रकाशा ।
चौथे शत्रुहन भैय्या ।।
अवध में बाजे बधइया ।।-
श्री राम नाम की महिमा अपरंपार है,
मन भज तू नाम राम का बेड़ा पार है ।।
सिया हरण के पहले, रावण ने सोचा मन में,
समय उचित है, रामलखन हैं दूर सिया से वन में ।।
सीता जैसी पतिव्रता को मैं न लुभा पाऊँगा,
इसलिए राम का रूप बना सीता के सन्मुख जाऊँगा ।।
श्री राम का रूप बनाने को, जब मन में उसने ध्यान किया ।
श्री राम नाम की महिमा से, घबराया दिल डोल गया ।।
आसुरी गुण की जगह, दैवीय गुण आने लगे उसमें ।
घबराया औरछोड़ा विचार, साधु का वेश बनाया उसने ।।
यह बात स्वयं रावण ने, कुम्भकर्ण को बतलाया था ।
जब कुम्भकर्ण ने रावण को, इस छल के लिए धिक्कारा था ।।
इसीलिये तो,
श्री राम नाम की महिमा अपरंपार है,
मन भज तू नाम राम का बेड़ा पार है ।।-
एक दिन पंचवटी में बैठे-बैठे, जब लक्ष्मण जी सुदूर वन में थे ।
श्री रामचन्द्रजी बोले श्री सीता जी से,
अब मायावी युद्ध होगा, इसलिये हमें भी उसी अनुरूप चलना होगा ।
मैंने अग्निदेव को बुलवाया है, इसलिए लक्ष्मण को दूर पठाया है ।
तुम अग्निदेव के संरक्षण में रहोगी, मेरे पास तुम्हारी छाया रहेगी ।
श्री सीता जी तैयार होकर, अग्निदेव के संरक्षण में चली जाती हैं ।
यहाँ प्रतिरूप माया की सीता जी रह जाती हैं ।
लंका विजय के पश्चात जब सीता जी आती हैं,
सीताजी की अग्निपरीक्षा होती है ।
वास्तव में अग्निदेव असली सीता जी को वापस लौटाते हैं,
और माया की सीता अग्निदेव लेकर चले जाते हैं ।
अग्निपरीक्षा और कुछ नहीं, असली सीताजी का आना और माया का जाना है ।।
🙏 जयश्री सीताराम 🙏-
🙏ऊँ उमामहेश्वराय नमः 🙏
मन मंदिर में शिव का ध्यान कर,
पुनः शिव को पति रूप में पाने का संकल्प लेकर ।
सती ने योगानल से आत्मदाह कर लिया ।
जब अर्धनारीश्वर शिव की शक्ति, शिव से अलग हो गई शिवा ।
शिव अखण्ड समाधि में लीन हो गए ।
शिव बिना देवता दीन-हीन होगए ।।
तारक असुर का आतंक इतना बढ़ गया ।
सारी श्रृष्टि में हाहाकार मच गया ।।
सती का पुर्नजन्म हुआ हिमाचल के घर ।
नारद मुनि ने देखा कन्या का भविष्य विचार कर ।।
यह कन्या पार्वती कहलाएगी ।
कठिन तप से शिव को पति रूप में पाएगी ।।
पार्वती पुत्र से अंत होगा तारक असुर का ।
तब मिटेगा क्लेश और संताप जग का ।।
🙏 ऊँ उमामहेश्वराय नमः🙏-