Akash Tiwari (अनंत)  
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Joined 25 August 2018


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Joined 25 August 2018

हमारी परिभाषाएं कितनी संकीर्ण होती हैं...
किसी के छोटे-बड़े होने मे हम उसका धन देखते हैं...
क्यूंकि उसके विचार हमारे लिए मायने नहीं रखते...
किसी की भावनाओं को समझने से पहले...
हम उसका रहन-सहन (पोशाक) देखते हैं...
हम जब भी देखते हैं किसी को खुद से
तुलनात्मक रूप मे ही देखते हैं...
हमारी परिभाषाएं कितनी संकीर्ण होती हैं...
हम किसी बच्चे को जिद करते हुए देखकर...
उसकी उम्र देखते हैं...
कभी-कभी सोचते है, हमे देखने के लिए...
आखिर हमारी दृष्टि बाधित क्यु हो जाती है...?
शायद हमे सोचना चाहिए हम चेतना के
उच्चतम स्तर पर पहुंचने की
बजाय गर्त में क्यु ही जा रहे हैं!!?

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हम नाराज नहीं होते उन्हें लगता है,
हमे दुःख नहीं होता!!

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मेरी उलझने तमाम है, तू जानती है कहीं!
मेरे सपने आसमान है, तू जानती है कई!!
मैं संवार दूँगा तेरी ख्वाहिशों को सभी!
तू बढ़ाए रखना मेरे साहस को!
बाकी मैं सम्हाल लूँगा सभी!!

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जैसे मानवता पूर्ण होती है दया से!
हृदय पवित्र होता भक्ति व प्रेम से!!
ठीक वैसे ही, तुम्हारे दुःख मे...
मेरी आँखों से अनवरत आंसुओ का आना!
प्रमाण है, मेरे कठोर हुए मन का धीरे-धीरे निर्मल होते जाना!!
अंतःकरण से आभार् इस कठोर से सरल की यात्रा के लिए!!!

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सेवा का सुख शब्दों की सीमा से परे है!!

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सिर्फ प्रेम ही हिस्से आए ये आस नहीं है मेरी!
तेरे गुस्से को भी प्यार समझ जीवनभर
सजोंने का वादा है मेरा!!

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किसी भी रिश्ते मे अपनी बात कहने से पहले सोचना पड़े ऐसा नहीं होना चाहिए!
सोचना तो बाहरी के सामने पड़ता है अपनों के सामने नहीं!!

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सम्पति से संतोष मिल सकता है, सुख नहीं!
मन की शांति व सुख के लिए जरूरी है व्यवहार का सही होना!!

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तुमसे "अपेक्षा" बस इतनी सी हैं...!
तुम बचाकर रख पाना मेरा "प्रेम"...!!
मेरे "संघर्षों" का समझ पाना महत्व...!
मेरे अधीर हुए मन को दे पाना "साहस"...!!
उन तमाम कोशिशों को तुम देना "नई उड़ान"...!
जिनसे हमारे "सपने वास्तविकता की धरातल" पर उतर पाए...!!
और अंतिम अपेक्षा है, तुम रहना मेरे साथ "जन्मों-जनम" तक...!!!

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बेटियाँ उस खुलें पिंजरे मे क़ैद की तरह है...
जहां खाने-पीने की आजादी तो है...
लेकिन जीवन के अन्य महत्वपूर्ण...
निर्णयों पर उनका कोई अधिकार नहीं...
जिनसे शायद उनका जीवन संवर सकता था...

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