जब शौच का नियम हैं,
तो फिर 'सोच' का क्यों नहीं!?-
जनाब, पाबंदी खुले में शौच पर है,
उसको खुली हुई सोच से confuse न करें।-
पब्लिसिटी की भूख
आज के इंसान को
ज्वालामुखी के मुहाने पर
दिशा-मैदान के लिए ले जाए
तो ताज्जुब मत करना।।
☺️लोटा उठा के☺️-
धर्म को धारण करने के दस लक्षण/रास्ते है उनमें से पाँचवा 🙏🏻शौच🙏🏻 है,
लोभ का वर्जन ओर संतोष धारण करना ही उत्तम शौच धर्म है।
ॐ ह्रीं उत्तम शौच धर्मांगाय नमः-
! दसलक्षण पर्व का चतुर्थ दिवस !
!! उत्तम शौच !!
जीव शील, जप-तप, ज्ञान-ध्यान के भावों से ही शुचि अर्थात स्वच्छ होता है। नित्य गंगा-यमुना अथवा समुन्द्रों के पूरे जल से भी यदि इस देह को स्वच्छ करने का प्रयास करोगे, तो भी यह स्वच्छ होने वाली नहीं है।
यह ठीक उसी प्रकार है, जैसे कोई घड़ा ऊपर से तो स्वच्छ हो तथा अंदर से उसमें मल भरा हुआ हो तो कौन उसे स्वच्छ कहेगा?; वैसे ही, यह देह भी ऊपर से तो सुंदर दिखाई देती है परंतु अंदर झांकने पर इसके समान अस्वच्छ वस्तु कोई नहीं है।”
“इसलिए ज्ञानीजन इस मैली देह के राग को छोड़कर अनंत गुणों की पोटली भगवान, आत्मा तथा उत्तम शौच धर्म को धारण करते हैं।”-