आज भी याद है मुझे
बचपन की वो पहली बारिश
माँ का हमें घर में बिठाना
और हमारा बारिश में
नहाने को मचलना .
माँ की नज़रो से छिपकर
कागज़ की नावें बहाना
गड्ढो की पानी में छपछपाना
सर्दी-जुकाम होने पर
माँ का नाराज़गी जताना
आज भी बखूबी याद है मुझे
बचपन की वो पहली बारिश.-
फूल खिलकर भी उदास है
समुन्दर को आज पानी की प्यास है
लहरों की नहीं खत्म होती तलाश है
मधु के रस से खो गयी मिठास है.
रोज उगते सूरज ने आज
नहीं खोली है अपनी बाँहें
और न ही कोयल की कूक
भर रही किसी के मन में आहें.
बारिश की पहली बूँद आज
धरा पर गिरकर खुश नहीं है
मिट्टी से उठने वाली वो
सौंधी महक भी नहीं है.
कलियाँ भी नहीं खिली फूलों पर
चहकने वाली चिड़ियाँ आज खामोश है
छायी है ऐसी नीरवता
मानों सब बेहोश है.
चारों और यही है वातावरण
सब ही हताश है
एक बार मुस्कुरा दो आप
क्योंकि खुदा को दुनिया की
सबसे प्यारी हँसी की तलाश है.-
वो पहली बारिश जब धरती पर आएँ,
सोंधी सोंधी खुशबू चारों तरफ छाएँ।
गोरी भी कजरी और मेघ मल्हार गाएँ,
कोयल की कूँक सुन मन मचल मचल जाएँ ।
पपीहे की पीहू पीहू होश क्युँ उराएँ,
गोरियाँ भी सजधज कर सावन मनाएँ॥-
वो पहला तारा
जो आसमान पर दिखा था
न जाने कितने चेहरे पर मुस्कान लाया था
न जाने कितने अंधेरे को मिटाया था।।
वो पहला रोना
जब वो बच्चा रोया था
न जाने कितनों के जहां बनाया था,
न जाने कितने दिलों में खुशियां लाया था।
वो पहली बारिश
जो आसमान से टपका था,
धरती खूबसूरत और
न जाने कई ज़िंगागी आसान कर गया था ।।
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वो पहली बारिश की बूँदे ,
जब भी मुझे छूकर जाती है,
हर बार याद तुम्हारी आती है ।
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हा याद है मुझे बारिश जब हम मिले थे।
जब एक साथ हम फूलो की तरह खिले थे।
हा याद है मुझे वो बारिश जब हम मिले थे।
जब तुम्हारे मुझसे ओर मेरे तुमसे ना कोई शिकवे ना गिले थे।
हा याद है ।मुझे वो बारिश जब हम मिले थे।
जब तुम मुझे देखकर मुङे थे।
हा याद है। मुझे वो बारिश जब हम मिले थे।
जब हम दोनो के रास्ते एक साथ जुङे थे।
हा याद है मुझे वो बारिश जब हम मिले थे।
जब हम दोनो के एहसासो के पन्ने एक साथ खुले थे।
हा याद है ।मुझे वो बारिश जब हम मिले थे।
By Mourish Gurjar
Inspiring soul-
Vo pahli barish mitti ki khushboo
Vo pahli barish bachapan bekaboo
Vo pahli barish chidiyo ki chahak
Vo pahli barish bhigne ki lalak
Vo pahli barish yado ki pudiya
Vo pahli barish me nachti choti ci gudiya
वो पहली बारिश
Vo pahli barish...-
बेवजह सि बारिश मे एक बस हमही भींगते रहे,
अब उन्हें कौन कहे,
बारिश बाहर नहीं, हो अंदर रही है|
बक्त बेवक्त हम उस वक्त वो कोसते रहे,
यह पहली मर्तबा नहीं,
शीशे से बिखरे यहा राज़ भी कई है|
जब पहलि बारिश मे भींगते और सिकुड़ते हुए
तुमने कहा, रुको हम अभि आते हैं,
इसी इंतजार मे, खड़़े हम आज भी, वही है|
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वो पहली बारिश
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याद आती है सनम
'वो पहली बारिश'
जिसमें तेज़ हवाओं ने
उसकी शीतल बूँदों को
हम पर बरसाया था!
उस दिन हावड़ा ब्रिज पर
दोनों ही सराबोर हो
अपने को खो दिए थे
एक दूसरे के प्रति...-