सबसे ज़्यादा दुःख
सबसे ज़्यादा दुःख हुआ
आंखों में आंसू भर आए
आंसू टपके बार-बार कई बार
साथ में लिए आंखों की रोशनी
आंसू निकलने के बाद भी
दुःख कम नहीं हुआ
ग़म बना रहा अंतस् में
मज़बूत से मज़बूत मन ने
टेक दिए घुटने जब दुःख हावी हुआ...!-
मैं मुक्तिबोध का शिष्य होना चाहता हूँ
तुम मुझे अपनाने से पहले सोच लेना!
📖 प्रकाशित पुस... read more
//दृश्य//
तमाम नए पुराने दृश्य से होकर गुज़रते हैं हम
हर रोज़ प्रवासी पक्षी की तरह भटकते हैं हम-
पास होने की अनुभूति
पास होने की अनुभूति ही
सबसे पास होती है...
दूर होकर भी ये अनुभूति
दूर नहीं हो पाती...-
आवाज़ देते रहिए
अपने अंदर जड़ होती आत्मा को
थोड़ा सा 'स्कैफोल्डिंग' बनिए उसकी
बाहर थकान हो या
लोथ होती मांस हो बेशक!
कुंठा, दुःख या चाहे हो असीम क्रंदन...
थका हारा वो नहीं, आपका मन भी नहीं
(आप जानते हैं)
ग़म और आंसू अस्थाई है हमारे शरीर की तरह
आप आगे ले आइए हाथ पकड़ कर उसे...
ये पूरी संसृति उसी की है, ये पूरी की पूरी प्रकृति
और आप भी तो!-
दर्द
मेरे शब्दों से बहते आंसू
तुम्हारी रूह को गीली कर देंगे
और तुम समझ नहीं पाओगे--
दर्द को!!-
दुखों का सैलाब
जब ज़िंदगी में
एकाएक प्रवेश करती है
तब पता चलता है अंधकार क्या है!!-
अंधेरा जानलेवा था
इसीलिए मैं खुले आसमान के नीचे
दिन में ही सो जाया करता था...-
इक कमरा तन्हाई का
अपने अंदर लिए बैठा हूं
तुम चाहो, किसी भी वक़्त आ सकती हो!-
एकेलापन ऐसे है जैसे तुंग शिखरों पर पड़ी बर्फ़
तुम वहां जाना चाहोगे एकपल
पर चाह कर भी नहीं जाओगे...
उसकी ठंडक तुम्हारी गरमाहट से कहीं अधिक है!
तुम उसे दूर से ही देखोगे, आनंदविभोर होओगे
और चले जाओगे अपने देश, अपने क़स्बे में।
और वह बर्फ़ वैसे ही पड़े-पड़े किसी दिन
गल कर ग़ायब हो जाएगी!!-