Omprakash Prasad   (ओम)
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Joined 19 May 2017


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28 SEP 2024 AT 17:39

अंधेरा जानलेवा था
इसीलिए मैं खुले आसमान के नीचे
दिन में ही सो जाया करता था...

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27 SEP 2024 AT 23:27

इक कमरा तन्हाई का
अपने अंदर लिए बैठा हूं
तुम चाहो, किसी भी वक़्त आ सकती हो!

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25 SEP 2024 AT 16:18

एकेलापन ऐसे है जैसे तुंग शिखरों पर पड़ी बर्फ़
तुम वहां जाना चाहोगे एकपल
पर चाह कर भी नहीं जाओगे...
उसकी ठंडक तुम्हारी गरमाहट से कहीं अधिक है!
तुम उसे दूर से ही देखोगे, आनंदविभोर होओगे
और चले जाओगे अपने देश, अपने क़स्बे में।

और वह बर्फ़ वैसे ही पड़े-पड़े किसी दिन
गल कर ग़ायब हो जाएगी!!

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25 SEP 2024 AT 15:51

अपने‌ अंदर
उम्मीद का सवेरा लिए
उठते हैं हम हर दिन!
रात की थकान,
रोशनी होने नहीं देती अंतस् में
थकान का काम है हमें गिराते रहना
उस असीम गर्त में जहां
हम अपने ही अस्तित्व के तलाश में
बिखरते रहें हर पल...

सवेरा होने से पहले हमें
गर्त के और थकान के रहस्यों को
जान लेना अत्यंत ज़रूरी है!!

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16 SEP 2024 AT 23:19

अंधेरी रात कहती है
वो तमाम किस्से व कहानियां
जब पथिक रात को
सफ़र पर होता है...

एकांत‌ होने का एहसास
अंधेरी रात कराती है सफ़र भर उसे
वह एकाएक महसूस कर पाता है
अपने अंदर के कमियों और शक्तियों को
वह कई बार बातें करता है ख़ुद से।

अपने अस्तित्व की छानबीन में
वह जान पाता है ख़ुद को अब पहले से बेहतर
क्योंकि ये जो खुशबू वह अनुभव कर रहा, इस यात्रा में
वह तो अंधेरी रात की ही है...

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16 SEP 2024 AT 13:32

भविष्य का एक पन्ना
मैंने अभी से सुरक्षित कर रखा है
यह पन्ना बिल्कुल साफ़ और उजला है
इसको मैंने कोरा ही छोड़ दिया है
ताकि पन्ना, पन्ना बना रहे।

इस पर गर कुछ लिख दिया जाए तो
पन्ने का अस्तित्व ख़त्म हो जाएगा।
मैं पन्ने पर कुछ नहीं लिखना चाहता
आने वाले दिनों में हमें मालूम है कि
पन्ना संभावनाओं से भरा हुआ होगा।
इसके पीलेपन में बीती बातों की ताज़गी और
यादों की वो खुशबू होगी जो आज के समय को
चुनौती देगी।

नयी पीढ़ी पन्ने को देख-देख कर कुंठित होगी,
अवसादित मन से वह पन्ने पर काट-पीट करेगी।
शायद इसपर लिखने की उसे सूझ ही ना हो
या हो सके तो उसके पास शब्दों का अभाव हो!

हो सकता है कि पन्ना ही कह दे-
"तुम लिख भी क्या लोगे!!"

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14 SEP 2024 AT 22:20

मेरी प्यारी भाषा हिंदी
तुम सबसे सरल, सुंदर व सजीवता से भरी हुई हो
तुमने ना सिर्फ़ भारत के लोगों को आपस में जोड़ा है
अपितु हर प्रांत में उनकी भावाभिव्यक्ति की है।

तुम केवल एक भाषा ही नहीं
बल्कि वो अभिव्यक्ति हो जिसका संबंध
हमारे हृदय से, हमारी भावनाओं से है।
तुम सबसे मधुर व सौंदर्य की पहचान हो,
तुम सबके दिलों में बसी जान हो।

मेरी प्यारी भाषा हिंदी तुम डरना नहीं,
हम गर्व से तुम्हें जन-जन तक पहुंचाएंगे।
हम पूरे राष्ट्र में हिंदी की परचम लहराएंगे।
तुम हो वो रौशनी हो जो अंधेरे को हराएगी,
हर घर, हर मन में तुम्हारी महिमा गाएगी।

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11 SEP 2024 AT 20:21

ख़ुद से मिलने निकले हैं
हम आज ख़ुद के सफ़र पर निकले हैं
अंतस में छिपे वे तमाम जगहें, जिनसे हम अब तक अनभिज्ञ हैं
जिनके रहस्यों को, रीतियों को जानना अभी शेष है
हम उन जगहों के भ्रमण पर निकले हैं...
हम आज खुद से मिलने निकले हैं।

हम उस मंदिर के दर्शन को निकले हैं जिसके दरवाज़ें वर्षों से बंद हैं
जिसका रोम रोम में तीर्थ है, जिसकी आत्मा का परमात्मा से मेल है
हम आज उसी पर जल चढ़ाने निकले हैं।
हम उस 'हम' से मिलने निकले हैं

हम ख़ुद से मिलने निकले हैं...

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6 SEP 2024 AT 22:25

कोई अपना सा आता है इक दिन
और बहुत कुछ दे जाता है फ़रिश्ता बन कर।
उसके आने भर से हमें जो प्रसन्नता होती है
उसे हम महसूस कर मुस्कुराते हैं आजीवन,
ज़िन्दगी के हर सफ़र में, हम उसे जीते हैं।

वह अपना सा व्यक्ति ही बस अपना है
बाक़ी सब स्वार्थ और दिखावे से लगते हैं
वे आधुनिकता के इस भंवर में,
अवास्तविक से प्रतीत होते हैं।
मानो सब 'एआई' बनते जा रहे हों!

आज जीवन जीने के लिए हमें कोई अपना सा चाहिए,
क्या तुम फ़रिश्ता बनोगे हमारे लिए...

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1 SEP 2024 AT 7:44

ओ इंसान!
तुम सभ्य बनो इतना
कि दे सको
आने वाले भावि पीढ़ी को
एक नयी रोशनी।

तुम शिक्षित बनो
इतना कि बन सको
अपने बच्चों के लिए
एक खुली किताब।

ओ इंसान!
तुम भरो ख़ुद में
इतनी करुणा,
इतनी संवेदना कि आगे
'इंसान' करारे जाओ!

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