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पलकों तले इंतज़ार की लौ जला रखी है
किसी राज़ की तरह होंठों पर सजा रखी है
तुम किसी दिन आना एक मुलाक़ात लेकर
दिल में एक उम्मीद की किरण दबा रखी है-
सरमाया-ए-दिल-ओ-जाँ गँवाई है मैंने
दर्द-ए-मुसलसल से ज़िंदगी सजाई है मैंने
तुझ से जुदा हो कर ऐ यार-ए-जानी
अफ़्सुर्दा माह-ओ-साल कमाई है मैंने-
दिल करता है मेरा, मैं तेरा हो जाऊँ।
तेरे मीठे-मीठे सपनों में मैं खो जाऊँ।
मुदत्तों से रहता हूँ बेचैन सा मदहोश
कि आज तेरी आग़ोश में मैं सो जाऊँ।-
नज़ाकत, उल्फ़त और शरारत का पैमाना है
वो नाज़नीं छलकता जाम, वही मयख़ाना है
कहने को, दिखने को है, वो भी आदमज़ाद
असल में परी, अप्सरा, ख़ुदा का नज़राना है
- साकेत गर्ग-
सर-ए-रात ग़म खोलती रही बिस्तर पर
सिलवटें तमाम टटोलती रही बिस्तर पर
जाने किसकी याद ने जलाया उसे सहर तक,
पाज़ेब राज़ सब खोलती रही बिस्तर पर।-
अब के तुम आओ तो हवा बनके,
मेरी बे-सुध साँसों की दवा बनके,
हर खिड़की खोलूँ हर किवाड़ मैं,
बस जाना हर ज़र्रे का जहां बनके-
ख़त में अपनी तन्हाई लिख रहा था,
दूर शहर में एक कलाई मुझपर रुबाई लिख रही थी ।-
कभी ग़ज़ल तो कभी कोई रुबाई बनकर .
वो मेरी कलम के साथ रहा रोशनाई बनकर .
उसी को सौंप दी यह दिल की कश्ती मैंने ,
जो ज़िन्दगी में आया था तबाही बनकर .
तैर गई लाश मेरी तो मुझको बचाने आये ,
साहिलों पर जो बैठे रहे तमाशाई बनकर .
मिटाने से न मिटेगा कभी तेरे दर्द का "राज़"
इस दिल में रहेगा सदा इक सच्चाई बनकर .-