मौन शब्द हूँ मैं! तुम तक पहुँच कर ही,
कहानी बनूँगी।-
"मौन"
अवहेलना की अग्नि में जलकर,
धुँआ-धुँआ हो गया था मन ;
उसे बुझाने की युक्ति,
ढूंढ रहा था ये नश्वर तन ;
निशाकर जब भानु की तेज़ में
विलुप्त हो जाता है ;
मन भी तिरस्कार का घूँट
पीकर रह जाता है ;
"मौन" हो जाता है वो,
दब जाता है अपने हीं तेज़ से ;
असहाय हो जाता है वो,
बिछड़ जाता है अपने हीं ध्येय से ;
प्रश्न करता है वो अपने हृदय से-
'क्या "मौन" रहना हीं मेरा दुर्भाग्य है!'
उत्तेजित होकर पूछता है हृदय से
मेरे भाग्य का रचनाकार -
आखिर 'कौन था!'
संतुष्ट हो गया था वह अब
उसे अपने प्रश्न का उत्तर
मिल गया था...
क्योंकि उसका हृदय भी
अब "मौन" था...-
मौन अगर व्रत सा है तो वो मौन साधना है
मौन आपसी अनबोला है तो वो मौत सा है
शोर अगर भीतर का है तो वो सार्थक है
शोर अगर बाहर का है तो वो निरर्थक है-
मौन मुखरित मेरा अंतर्मन ___
क्या अधरों को सील देने मात्र से हो जाती है मौन की परिभाषा पूर्ण
फिर जो उठते मन मे द्वंद होता रहता जो अनकहे , अनबूझे शब्दों का मन मे तांडव उसे फिर समझायेगा कौन ??? तब समझा गए ये ही शब्द कर गए मुझे निःशब्द अधर तू कर ले जब अपने सम्पूर्ण बन्द तो नही खत्म होगी ये शब्दों के हाहाकार की गूँज मगर क्षण -क्षण ये भी पड़ते जाएंगे मध्यम हो जाएगी इनके शोर की गूंज शिथिल अंत मे हो जाएंगे ये भी जब अंतर्मन की गहराई में विलीन ओर हो जाएगा इनका अस्तित्व खत्म तब सिर्फ बच जाएगा तेरा
मौन मुखरित अंतर्मन
मौन मुखरित अंतर्मन
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तुम्हारा मौन तुम्हारी साधना है
और
मेरा मुखर होना मेरी तपस्या ....-
मिट्टी को ओढ़
बीज जब सृजन करता है
सोचती हूँ
कितना दीर्घकालिक मौन
और कितनी गहराई
दूर तक सन्नाटा
फिर सोचती हूँ
काश
मौन और गहराई का भी
कोई रंग होता
या कोई मोती से होते
जिसे एहसासों के धागे में पिरो पाते
कल्पनाएँ कितनी आसानी से
कैनवास पर उतर जाती हैं
किंतु मौन और गहराई
जाने कितनी
सूक्ष्म कंदराओं से
गुज़र कर आते हैं न
जब सभी मरहम
बेअसर और बेबस हो जाता है
मौन पाषाण सा अडिग
और प्रकृति सा विस्तृत हो जाता है
और
गहराई यथार्थ दीर्घकालिक सी
मौन और गहराई सारथी बन
दूर क्षितिज के पार सुकून में छिप जाता है
अधेड़ता में भी मैं
कुछ ऐसी सुंदरता चाहती हूँ..
रजनी-
कठिनाइयों से राह की, अनजान नहीं हूँ-
अनुभव अलग हो बेशक, हैरान नहीं हूँ,
रुकना नहीं किसी ठोह पर, ये ठान लिया है-
लक्ष्य क्या पाना, ये मन ने जान लिया है,
साध स्वयं को रहा मौन! ले, परेशान नहीं हूँ...कठिनाइयों...
क्रमशः.....✍️-