कोई मंदिर से ख़ुश था कोई मस्जिद से और मुझे ये देखकर हयात मिली l
किस्मत वाला था ए-दोस्त तुझे यार की गोद मे वफात मिली ll
کوئی مندر سے خوش تھا کوئی مسجد سے اور مجھے یہ دیکھکر
کسمت والا تھا ایے- دوست تجھے یار کی گود مے وفات ملی -
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जो लोग गुज़रते हैं मुसलसल रह-ए-दिल से
दिन ईद का उन को हो मुबारक तह-ए-दिल से!!
ओबैद आज़म आज़मी-
कोई बोलता है, तुम हिन्दू बन जाओ।
कोई बोलता है, मुसलमान बन जाओ।
कुछ ऐसा कर जाओ इस जिंदगी में कि,
हर मज़हब की तुम "पहचान" बन जाओ।
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हिंदु मुस्लिम बना लिए, फिरसे जात-पात मत करना तुम,
या अल्लाह, है राम वालों अब मन्दिर मस्जिद पे ना लड़ना तुम।।-
मज़हब ना पूछ मुझसे मेरा ए मेरे दोस्त,
मज़हब पे ऐतबार में ना रखती हूँ।
क्योंकि अगर में अपने भगवान पे भरोसा करती हूँ,
तो में तेरे अल्लाह पे भी यक़ीन रखती हूँ।।-
हम मन्दिर भी चले जाते थे, मस्जिद भी चले जाते थे,
मज़हब पे लड़ाई नही थी तब,
छुपम छुपाई में हम बच्चे दोनों जगह छुप जाते थे।।-
क्यों लड़ती है दुनियाँ आपस में ये बात समझ ना आती है,
मज़हब पे लड़ना तो गीता ना क़ुरान सिखाती है।।-
मैं ये खेल नहीं होने दूंगा! हर एक-एक को पथ पे लाऊंगा!
फ़िर से परमात्मा जन्मेंगे, तुम सब का वध तो निश्चित है!
हे मनुष्य जाति के लोग, तुम समझ जाओ इस खेल को!
नहीं रखा इसमें कुछ, तुम क्यों खुद के खून के प्यासे हो?
ना श्रीकृष्ण कभी कुछ कहें हैं!
ना ही मोहम्मद ने कहा कभी कुछ!
ना कह गए ईशा मर्सी कुछ!
ना बुद्ध कभी बांटे हैं!
ना महावीर कभी कुछ कहें हैं!
ना गुरु नानक साहब कभी बांटे है!
सब ने अपने उपदेशों में, मानवता को ही समझाया है!
फ़िर धर्म कहाँ से आया है? फिर धर्म कहाँ से आया है?-
मत बाँटो प्यार को हिंदू - मुसलमान में ,
उड़ने दो उनको जैसे पक्षी आसमान में ।
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