सीधे सादे से है हम
कोई पैच - ओ - खम नहीं रखते
जी भर आता है तो
रो लेते है हम कोई ग़म नहीं रखते
दर्द जिंदगी - ए - दस्तूर है
गलतफहमी मत रखना ए दोस्त
क्योंकि हम दुआओ में असर कम नहीं रखते
दुश्मनी नफ़रत गिला या शिकवा
कुछ शब्द है
जिन्हे दोस्ती के बीच हम नहीं रखते
जिंदगी में दाखिल होते है
और चले जाते है लोग तुम आगे बढ़ो
क्योंकि हमेशा तो आंखे नम नहीं रखते .......-
कौन केहता है
मासूमियत ख़त्म हो गई इस ज़माने में
हम तो आज भी इतने नादान है
कि एतबार करने की खता
बार-बार कर बैठते हैं...-
गुस्सा इतना कि पूछो मत
और मासूमियत ऐसी कि कभी देखी ही नहीं
🖤🚦-
उसके चेहरे से मुस्कुराहट कभी
जुदा ना करना
ए ख़ुदा
बड़ा ही मासूम चेहरा है
उसका
कभी उदास हो तो
अच्छा नहीं लगता.....🍁-
लिखता हूँ जो भी होतें हैं दिल में जज्बात
सोचता हूँ कभी रखूं नहीं कोई दिल में बात ।
मासूम से ख्याल और मासूमियत से भरें जज्बात
हो गए हमारें जबसे हुई हैं उनसे हमारी मुलाकात ।
मुझे वो कहते हैं समझने लगे हम सब तुम्हारें जज्बात
इस दुनिया में कितने नादान तुम और तुम्हारें मासूम ख्यालात ।
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मैं मजबूर भी नहीं हूँ,
लेकिन मगरूर भी नहीं हूँ|
"मैं मजदूर हूँ, क्योंकि मैं मगरूर नहीं हूँ,
लेकिन मैं मजबूर नहीं हूँ"
(मजदूर दिवस )-
कितनी मासूमियत से उन्होंने हमें अपनी “जान ” कह कर हमें “बेजान ” कर दिया .......
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कहाँ हम खिलौने पर अटके थे
दुनिया की रन्गियिनीयत में अभी कहाँ भटके थे
नजरे उठाकर देखा तो दूनियाँ गोल निकली
और हम कोनो को तरासने निकले थे-
यह तुम्हारा हुस्न ए नज़र है और कुछ नहीं
लाख ढूंढा मगर तुमसा न कद्रदान पाया मैने-