बयां से परे है तेरे ख्याल का सुकून
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एक झलक को उनकी ये निगाहे तलबगार है
माना जुबां पर ना ना लेकिन दिल को एतबार है
चाहूं उन्हें हर पहलू से , इसके खातिर
खूबियां उनकी जगजाहिर , हमे खामियों का इंतजार है
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maybe i love you ,
but I'm unwilling to admit it
for fear of not being loved by you-
दिल भर आता है
पर ये आंसू निकलते नहीं है ...
बहकना चाहती हूं मैं
पर महक हो इश्क की जिसमे
वो इत्र कही मिलते नहीं है....
जाहिर हम भी कर दे
इन गमों को कैफियत से
पर छिपे दर्द पन्नो पर उतरते नहीं है ...-
बहुत कुछ हार गए इश्क के रहते
अब इन अश्कों से हिज्र का कारोबार करते है
तुम भी ले आओ अपने छिपे जख्म
हम भी बरसो से संजोए दर्द तैयार करते है-
फकत निगाहे क्या मिली उनसे
वो सरेआम हमारे कातिल हो गए
कुछ यूं ले गया वो सुकून
हमारे ही शहर के हम मुसाफिर हो गए
काबू नहीं उमड़ते जज्बातों पर
इस इश्क दरिया के वो साहिल हो गए
हर सवेरे सांझ याद खुदा को किया
ना जाने कब हम ही काफिर हो गए .....
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खुशनसीब है वो जिन्हें मिलते है हमनशी करीब
हमें मिला है हर दफा इंतज़ारी का आलम
दर्द आता है उस दरख्वस्त से पूछे
जब आता है पतझड़ की बारी का आलम
एक खंजर सा सीने में उतरता है जब
जब उठता है उन्हें देखने की बेकरारी का आलम
हम जैसे कहलाते है पागल या शायर
शायद इसे कहते है इश्क फितुरी का आलम
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प्यार छुपाना अब मुझे नहीं आता
तेरा ज़िक्र भी अब होंठों से नहीं जाता
तड़प अब इस कदर बढ़ गई है
ना जाने क्यों ये इश्क बुखार मौत नहीं लाता .....— % &-