एक अदना से 'दिये'को भड़काया तुमने,
अब कहते फिर रहे हो, आग लग गई.......
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हम समझा भी दे , तो तुम समझो
गे नहीं,
क्यों कि तुम समझ गए, तो
दुनिया को बेवकूफ कोन बनाएगा
मदारी का खेल कोन दिखायेगा
इसलिए
हम चुप ही बैठे , वो ज्यादा ठीक है
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एक छोटी सी चिंगारी लगा
चले गए थे वो
आज बन गयी है वो ज्वालामुखी एक
फूट डालने आये थे वो
फूट डाल कर चले गए
हम उसी गलतफहमी में लड़ते रहे
उनका तो काम ही है फूट डालना
तुम बेवकूफ थे
जो जूठ को भी सच समझ गये
वो कामयाबी का जश्न मनाने लगे
तुम अभी भी गलतफहमी में जी रहे
वो चतुर थे तो निकल गए
तुम बेवकूफ वहीं फसें रहे-
आहिस्ता आहिस्ता आज फिर
उदासियों ने दिल में घर बनाया है
आज फिर किसी को कोई
बेसबब बेइंतहा याद आया है
जिनके साथ से रौशन था सारा जहां
चंद चिंगारियों ने उस बुझी आग को
फिर से भड़काया है
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ये न पूछो कि चिंगारी मुहब्बत की,
भड़कायी है किसने मेरे दिल में ।
कि मैं नहीं चाहता बेवज़ह हीं यहाँ,
संग मेरे किसी का नाम जुड़ जाए ।।-
मन तो मन है समझ ही जाता है,
ये जो दिमाग है मन को भी भड़काता है...-