मुझे मेरे नाम से न आंकिए
जितनी चंचल उससे भी अधिक
शिथिल हूँ मैं...-
मुझे वहाँ से सुनिए
जहाँ से मैं ख़ामोश हूँ
ये हँसना हँसाना तो
हुनर हैं मेरा....
मुझे वहाँ से पढ़िेए
जहाँ से मैं गंभीर हूँ
ये चंचलता तो प्रारब्ध हैं मेरा...
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लिखी गई होगी
शायद मेरी कहानी
उसी स्याही से
जिसकी तक़दीर में
ख़त्म हो जाना लिखा था...-
आसान नहीं
अक्स़र ख़ुद को
ही हराना पड़ता हैं
अपने ही सामर्थ्य पर
प्रश्न उठाना पड़ता है
दूसरों से तो युद्ध आसान हैं
यहाँ हर क्षण द्वंद खुद से लड़
ख़ुद को ही जिताना पड़ता हैं...-
आसान नही होता
मन को समझा
कठिन को सरल बनाना
स्वयं के बंधनों में बँधे
स्वतंत्र विचारों को रचना
न होता आसान स्वयं की
रची हुई सीमा से
निकल स्वच्छंद विचरना...
आसान नहीं होता
स्वयं को स्वयं से बचाना...-
मेरा जवाब सुनोगे क्या
या कहोगे वही जो चाहते हो
पूछकर हाल फिर
खो जाओगे अपनी धुन में
बातें मेरी समझोगे क्या
या नासमझ बन चले जाओगे
एक पल इंतज़ार करोगे क्या
या चले जाओगे बिन कुछ कहे
थोड़ा सब्र करोगे क्या
या फिर वक्त बन बीत जाओगे...
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सखी अपने मन को
बचा कर रखना
इस झंझावात से
लोगों की अनचाही बात से
तुम रखना स्वयं के
पुष्प से हृदय पर दृष्टि
रखना उसे बचा
इस जगत के आघात से
पथ में पड़े कंटकों के
मार्ग रोधी अप्रिय कष्टों से
हें सखी तुम करना
स्वयं पर दया
और बचा कर रखना अपने मन को
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मेरा मुझसे ये प्रश्न रहा है
कि तुम हार गई तो क्या
स्वयं से दृष्टि मिला सकोगी
फिर हर बार मन से यही उत्तर आया
कि क्या हो गया जो तुम हारी
तुम रण में डटी रही योद्धा की भाँति
तो क्या हुआ आज न मिला यश
पत्थर को भी रत्न बनते समय लगता हैं
तुम तुम्हारी दृष्टि में सही हो
और बस यही पर्याप्त हैं...-
तस्वीरें बताती है अब हाल जिनका
कभी वो हकीकत हुआ करते थे
कि जानना हो हाल उनका
अब तस्वीरें देख समझ जाया करते है
कि दूर है बहुत वो हमसे-