"रुपयों की नुमाईश का ढकोसला आजकल मृत्यु पर पसरने लगा है।
मृत्युभोज में भी पकवान के आंकडे गिनकर ज़हालत बरसने लगा है।।"-
19 JUN 2022 AT 16:07
11 FEB 2021 AT 17:33
पहले के विवाहों में भोजन करने वाले बैठे रहते थे और परोसने वाले घूमते थे। इसके विपरीत आजकल के विवाहों में भोजन करने वाले पागलों की तरह भटकते हैं और परोसने वाले एक स्थान पर खड़े रहते हैं..!
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19 JUN 2022 AT 15:37
दिखावा तो साहब !!! मृत्यु पर भी छाने लगा ।
मृत्युभोज भी प्रीतिभोज सी प्रतीति कराने लगा ।
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26 MAR 2023 AT 14:22
दावतें भी आजकल औपचारिकताओं का प्रदर्शन हो चली है,
पहले प्रेम परोसा जाता था आजकल खाना मांगना पड़ता है।-