मन दर्पण करें बारम्बार
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पहले स्वस्थ तन और मन पर केंद्रीकरण
कर ले तो हर नफ़रत का उन्मूलन है प्रेम ।
सहज वृत्ति नहीं ,एक विचारधारा के रूप में पनप रही है नफ़रत !जो स्वयं के ही विचारों को खोखला कर रही है । जितनी दृढता के साथ इसे बोया जा रहा है , दुगुना पुरुषार्थ करना पड़ेगा इसे उखाड़ फेंकने के लिए !!-
हाँ वैसा ही है !!
पर मुझे नहीं पता तुम क्या सोचते हो,
और अपनी सोच पर तुम कितना खरा उतरते हो।-
हरे में हरियाली देखी ,
केसरिया में जोश ....
बांधे रखते रंग हमें,न जाने किस
श्रेष्ठता को घोषित करने में ,
खो रहे
हम अपने होश....
विकल दीन भाव लिए
रंगों को अपनी पहचान बना रहे ....
तंग नज़रिया हमारा
निर्विवाद समरसता को ,क्यों न
हम गले लगा रहे....!
उजड़ेगा चमन इक दिन ,
वजूद की अलामत में !
राग कितना ही गा ले कोई,
हाथ अग्नि में
फिर भी जलाये जा रहे....
तंद्रा से इस ,, बाहर कैसे आयेंगे ,,?
न मैं समझने पाया ,न वो समझ पा रहे...।।
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मधुरता के सभी रसों से आप्लावित
रूप ,रस,गंध,स्पर्श से है पुलकित और प्रकाशित
मधु यह घोलकर मैं रोज पीता हूं
हां बस मैं इसी उन्माद में जीता हूं।-
आती रहेंगी ज्वार सी रवानी
न कर मोहब्बत इतनी
है ज़िंदगी ये जहान -ए- फ़ानी
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डाल दिया गले में...वो खूबसूरत हार है
पहनकर जिसे हर दम
प्रसन्नता का अनुभव करना है
हो चाहे फूल मुरझा जाये ।-