पग पाजेब नुपुर झुन घुंघराई
अनवट बिछिया नखत तराई
शुभ रुधिर महावर रतनाराई
मेहंदी पंकज सुमन सुरचाई-
पाजेब तेरी पग को आभा है बढ़ाई
पाजेब की छनछन मोरे ध्यान भटकाई
ये अनवट बिछिया तुझको है सजाई
फिर बलम को देखकर तुम क्यों सकुचाई-
नहीं याचिका अणुबम की
नहीं याचिका दावानल की
नहीं मांगा है अस्त्र-शस्त्र ही
उपकार हम पर कर दो प्रभु
कृपा कर दो जीवन चैतन्य की
सामर्थ्य भर दो जीवन की
न रहे क्लेश कहीं
न हो विघटन कहीं
समीर ऐसी बहा दो
पर्णों में नुपुर झंकार की-
"ध्यान"
छन-छन बजती, जब-जब नुपुर तेरी
सात स्वरो की सरगम, ख़ुद चलकर है आई।
ललाट पे जो आभा थी, बिंदिया की तेरी
क्षितिज से नव रश्मि, जैसे वसुधा पे आई।
अंलकृत तेरी ये मनोहर दृश्य, मेरे ध्यान भटकाई
आओ आलिंगन-पाश करें, पूर्णिमा की रात आई।
अपनी कोमल होठों पे, जब तूने मुस्कान सजाई
मेघ उमड पडा क्षितिज में, जैसे सावन की मास आई।
देखकर अपने साजन को, तुम क्यों सकुचाई
संगम हो जाने दो प्रियतम, देखो गोधूलि का बेला आई।-
धन्य धन्य नुपुर चूमा पांव कन्हाई
सुर ताल मिलाई वेणु के संग आई
राधा संग रास रचाई मुरली ने राधा मनाई
धन्य है वो बंसी
अधरों से श्याम ने लगाई
सुर अमर हो गए बंसी के
गाया जब यदुराई
जग में पहचान कराई गई कृष्ण कन्हाई
यश बंसी का फैलाए
सुर संगम बने कन्हाई
हवा भी हो गई पावन
श्याम से जो स्पर्श कराई-
सुख है एक छलावा नकली, चादर ले के आता
दुःख पे डाल दो पल खातिर, मानव को बहलाता
एक छोटी मुस्कान के बदले, ज़ख्म बड़े दे जाता
अश्रु पोंछने सांत्वना देने, मात्र दुःख रह जाता
सुख है एक छलावा...!-
पल पल की ये खामोशी मेरी ...!!
पल पल जलता मन,
थोड़ी थोड़ी सी ज़िन्दगी बची है..
थोड़ी सी उलझन...
खामोश रातें रोज़ दम घोंटती हैं मेरा ...!!
किससे कहुँ कौन है मेरा ...!!
#नुपुर@मन
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हो सकता था अपना वो,
ये बात याद आता है,
हो सकते थे हम उसके,
ये बात याद आता है।-
मर्यादा आग्रह की विषय वस्तु है।संवाद में अभद्रता/अपमान वह भी ईश/आराध्य के प्रति न केवल संवाद के स्तर को गिराता है बल्कि संवादियों की परवरिश का भी परिचायक होता है।सार्वजनिक जीवन मे वाणीं संयम अपेक्षित ही नहीं अपरिहार्य शर्त सरीखी है अन्यथा की स्थितियां विघटनकारी सिद्ध होती हैं।सूरज पर थूकने की निरानिर मूर्खता को बुद्धिमानी सिद्ध करने की कोशिश भी उपहासिक और विकटतं मूर्खता है।मत भूलिए " जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे" ही शास्त्र सम्मत है न कि 'जिन्ह मोहि गरियाए'।इसका यह मतलब भी कतई नहीं कि हिंसा को बढ़ावा दिया जाए बल्कि आत्मरक्षा के लिए ही आक्रमण किया जाए। अभिव्यक्ति की आजादी में ईश/आराध्य निन्दा,राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान और राष्ट्रीय संप्रभुता पर आंच कतई सम्मलित नहीं होना चाहिए भले कानून बदलना पड़े या संवैधानिक समीक्षा करके अनुच्छेद जोड़ना पड़े।'देश का नुकसान हमारा नुकसान और हमारा नुकसान देश का नुकसान' यह रत्ती भर बात समझाने के लिए पहाड़ भर प्रहार जरूरी है समय की मांग है।
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