Pradeep Kumar ( भव्य )  
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Joined 13 August 2019


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जब तक इस देश में प्राइवेट स्कूल बंद नहीं होंगे
गरीब का बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़कर गुलाम ही बनेंगे...

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जिस दिन खुलकर तुम मुस्कुराओगे
यकीं है मुझे भूल जाओगे.....!!

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मेरा प्रेम रूह से था, इसलिए दर्द के टिस से मैं पल-पल तड़पता रहा !
बात अगर जिस्म की होता तो, प्रेम के नाम पर जिस्म से मैं खेल लिया होता!!

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फ़क़त ऐसी की वो मेरे झूठी मुस्कुराहट पर फ़िदा हो बैठी,
सुनाया जब अपने हिस्सेदारी का किस्सा तो लौटकर वो दुबारा नहीं आई....

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तुम्हारी दिये हुए जख्म से
जब मैं उभर कर आऊंगा,
प्रेम की सुखद अनुभव का
कुछ अनुभूतियां मैं लिखूंगा....

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हार से समझौता, मैं कभी करुंगा ही नहीं,
लक्ष्य मेरा जीत है, जीत मुश्किल भी नहीं...!!

जो भी हो अड़चनें, अड़चनें से हम डरेंगे नहीं,
पथरीला पथ पर भी, चलना हम छोड़ेंगे नहीं.....!!

क्षितिज से चाँद-तारे तोड़कर, कोई लायेंगे नहीं,
प्रज्वलित सूर्य के प्रकाश को, रोक पायेगा भी नहीं ...!!

पानी को कभी रास्ता, दिखलाया भी नहीं,
साहिल के कश्तियां में, पानी कभी रुका ही नहीं...!!

झूठ कहता है लोग "प्रदीप", तेरे बगैर जी पाऊंगा नहीं
सच तो ये है, बिछड़कर कोई भी कभी मरते ही नहीं....!!

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सुनो कुछ कह रहा है, मेरा मन का ह्रदय तुम्हें ही
दिल की मासूमियत को, जरा सा समझो तुम भी........

प्रेम में डूबकर, कभी चाहत नहीं हुआ तुम्हें पाने की
तुझपर कोई दाग़ न लगे, इसलिए दूर रहा मैं भी ........

समर्पित कर दिया मैंने ये जीवन, अब तुम्हारे नाम की
गले लगा लिया मैंने प्रेम में, विछोह वियोग दर्द तड़प भी...

निभाना पड़ता है झूठ का दस्तूर, ये दुनियां की
यादों की आगोश में, तुम्हें भरकर रोता हूँ मैं भी......

इंगित करते मन की हर्षोल्लास हो, रात रानी पुष्प सी
ख़ुबसूरत पलाश के रंग में, बेरंग हैं हम दोनों भी.....

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धड़कनों की मनमानियां को, मैं क्या-क्या समझाऊं
ये दिल तुझपे जाँ-निसार‌ है, तुझको कैसे बतलाऊं ...

जरा सा तू भी करीब आ, तुम्हें गले से मैं लगा लूं
न जाने कितना दर्द हैं प्रेम में, मैं क्या-क्या बतलाऊं ....

जो छोड़ी है छाप तूने प्रेम का, उसे कैसे मैं छिपाऊं
पुछ रहा है ये दुनियां, उसे क्या-क्या मैं बतलाऊं ....

थाम कर मैं तेरी दामन, जीने का एक लक्ष्य बना लूं
तू सिर्फ मेरा है हक से ये बात, मैं दुनियां को बतलाऊं ...

संग तेरे मैं भी इस मौसम में, कुछ इस तरह खो जाऊं
धड़कनों की धड़कन में तुम्हीं हो, ये बात मैं बतलाऊं ...

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है खुला हमेशा मेरे मन का दरवाज़ा
प्रेम भाव से खोलो ये ह्रदय का ताला
सबसे सुंदर है मेरे मन का ये शिवाला
ए बुरी नजर वाले देखो तेरा मुँह काला...

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सत्यम = सत्य ही शिव है
शिवम = शिव ही श्रृष्टि है
सुंदरम = श्रृष्टि ही सुंदर है

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