तुम्हारे ख़्वाब और तुम्हारी ख़्वाब-गाह में रहूँ
हक़ीक़त में मैं अब सिर्फ़ तुम्हारी पनाह में रहूँ
अब किसी ज़ौक़-ए-परस्तिश की ज़रूरत नहीं
बस तुम देखती रहो और तुम्हारी निगाह में रहूँ-
ख़ुदा तुझे ही बुला रहा है
तू मयकदे क्यों जा रहा है
निगाह अपनी उठा के देखो
गुनाह सबके दिखा रहा है
सुना करो कुछ इधर-उधर की
सुखी भी दुख को सुना रहा है
चलो इबादत करें ख़ुदा की
ख़ुदा कहाँ कुछ छुपा रहा है
नहीं है दुनिया कहीं भी नंगी
नज़र को तू ही गिरा रहा है
रज़ा में राज़ी वही है 'आरिफ़'
तू हाथ जिस पर उठा रहा है-
निगाह उसकी कमाल करती
हज़ार मुझसे सवाल करती
उसे ही दिल में बसा लिया अब
वही तो दिल का ख़याल करती
छुअन में उसकी नशा है कुछ-कुछ
जो राख़ को भी गुलाल करती
नज़र में उसकी गजब सा जादू
हराम को भी हलाल करती
कभी तो 'आरिफ़' पुकार उसको
वही तो दिल में बवाल करती-
अभी मोहब्बत बना रहा हूँ
तभी निगाहें चुरा रहा हूँ
तबाह कुछ भी हुआ नहीं है
गुनाह अपने छुपा रहा हूँ
मुझे तो मेरी अना ने मारा
नज़र में ख़ुद को गिरा रहा हूँ
ख़ुशी के आँसू बता के इनको
वफ़ा का बदला चुका रहा हूँ
जफ़ा को ख़ुद में मिला के 'आरिफ़'
सफ़ीर ख़ुद को बता रहा हूँ-
उसके घर की ओर जाते-जाते पूरा आलम देखा
उस पर पड़ी निगाह
फिर क्या! ना रास्ता देखा, ना गड्ढा दिखा-
गुजरते थे हम जिनकी राह से
गिर गये वो ही निगाह से
हाथ तो अब भी हम हैं मिलाते
मिलते नहीं उत्साह से-
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल्ल नहीं
दिल नहीं _ वो दिल नहीं _ वो दिल नहीं ,
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दिल मे उतरने का एक रास्ता
कानो से होकर भी गुजरता है
दिल तो वो भी चुरा लेता है
जो नजरे झुका के चलता है-