तेरे बगैर ना सजदे किए कभी मैने,
बसा के दिल में तुझे कि है बंदिगी मैने,
वो और होंगे जिन्हे मौत आ गई होगी,
मेरी माँ से पाई है जिंदगी मैने,
माँ नर्मदा से पाई है ज़िन्दगी मैने।
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नर्मदा
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निरंतर हैं,अविरल हैं निर्मल हैं और सकल हैं
पाषाणों को तराशती माँ पुनर्नवा प्रबल हैं
ऋषियों को ज्ञान-ध्यान देती माँ ज्ञानदा हैं
ऐसी मोक्षदायिनी माँ नर्मदा हैं।
खुशियां अर्पण करती हैं,मोक्षदायिनी तर्पण करती हैं
अपने भक्तो के लिए सर्वस्व समर्पण करती हैं।
सृष्टि में आनन्द भरती, माँ हर्षदा हैं।
ऐसी सुरवाहिनी माँ नर्मदा हैं।
पचमढ़ी का श्रृंगार हैं सतपुड़ा का कांतार हैं।
शिव का अंश हैं और स्वयं ओमकार हैं।
निर्जन में प्राण फूंकती माँ प्राणदा हैं।
ऐसी कष्टनिवारिनी माँ नर्मदा हैं।
ज्योत सी प्रज्ञोत हैं खुशियों से ओत प्रोत हैं।
ऊर्जाप्रदायिका मात नर्मदा ऊर्जा का स्त्रोत है।
कल कल का उद्घोष करती,माँ सुखप्रदा हैं।
ऐसी मकरवाहिनी माँ नर्मदा हैं-
🌼माँ नर्मदा🌼
अमरकण्ट से निकली माता जग को तारने आयी है
हर प्यासे की प्यास मिटाने मां रेवा (नर्मदा) धरती पर आयी है..!!
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हे शंकर के मस्तक बिंदु,
जलरूपी करुणा सिंधु।
कल-कल बहती तुम जललहरी,
हो ब्रह्मज्ञान सी तुम गहरी।
मोक्षदायनी तुम माता,
जो दर्शन करता तर जाता।
तेरे जल के सब कंकर,
होते हैं माता शिव शंकर।
भजते है यहां सब नर,
बस नर्मदे हर,नर्मदे हर।
निशदिन ध्यान करे जो कोई,
निर्मल मन पाए नर सोई।-
हर ग्रंथ में जिसकी महिमा हैं,
वो माँ मेरी नर्मदा है,
माँ गंगा सबके धोती है पाप
पर माँ नर्मदा से मिलकर(संगम),से होती है साफ।-
बच्चे जब उतरते है
एक खूबसूरत नदी में
किलकारियां गूँजती है
नदी के तट पर
और गूँजती है
नदी में छपाक की आवाज़
जैसे बच्चों के सुर में
सुर मिला रही नदी।-
🌸🌿महाकाल🌺🌸
सेवा करू आपकी,सेवक हु आपका,
एक लोटा जल चढ़ाना,काम मेरा रोजका।-
"जय माँ नर्मदा मैया"
चरण बन्दन कर शीश नवाऊँ, हे माँ रेवा मोक्षदायिनी!
मस्तक पर तुम आन विराजो, हे अमरकंटक की माँ वरदायिनी!
दूध के जैसे कपिल की धारा, मंडला में है विशाल किनारा!
भेड़ाघाट में धुंआ छोड़ती, बरमान में ब्राम्हणों को तारा!!
सेठानीघाट में सेठ नहा रहे, ओम्कारेश्वर में ओम बनाती!
घाट जिलहरी लगे मनोहर और दिखाऊँ तुम्हे सप्तधारा!!
अब हम सबकी सुनलो विनती, कर दो दूर कष्ट तुम सारा!
अब बस यही रही प्रार्थना, नमन करूँ मैं तुम्हे मनाऊ!!
चरण वंदन कर शीश नवाऊँ, हे माँ रेवा मोक्षदायिनी!!— % &-
मात नर्मदे हर
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आरण्यक संस्कृति कहती, ओर मैकाल की घाटी कहती।
कहते जलधारा के तंतु जंतु, ओर रेवांचल की माटी कहती
धरती पर जब पाप बढ़ा और बोझ बढ़ गया इला पर।
देव सब एकत्र हुए और पहुंचे कैलाश शिला पर
महाकाल से अनुनय विनय हुआ, ओर चहुंओर त्राहिमाम हुआ।
माघ माह शुक्ल सप्तमी, शिवकन्या प्रकट हुई ओर मां रेवा तब नाम हुआ।
गंगा से भी प्राचीन धारा शिवअंश से बह निकली।
पहनो में प्राण भरती अपभ्रंश से बह निकली।
सूर्यकीरिट से शीश सुशोभित, चंद्रकिरण से चंदन है।
तुम पयोनिधि तुम देवविधि, कोटि कोटि अभिनंदन है।
तेरा जल ही महाकुंभ हैं, तेरे जल में सब तीरथ हैं।
तुम सृष्टि का पोषण करती, सभी देव शरणागत हैं।
सृष्टि का सृजन करती, तुम करती पितरों का तर्पण।
मात आपके चरणबिंदु पर, जीवन का हर क्षण अर्पण।
~रितेश-