Dinesh प्रेम yadav   (mr_mussafir_)
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Joined 27 December 2017


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Joined 27 December 2017

आंसू बने शृंगार,
बारिश कि बूंदें लगे अंगार,

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भारतवर्ष अब सजग हो गया,
आस्तीन के सांपों से,

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Once I saw in her eyes,
I melt like snow.

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कशिश नहीं कोशिश पर भरोसा रखें ।

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टूटी दीवारें
ऊंची मीनारें
कभी मझधार
कभी किनारे
आंखें सब कुछ देखतीं है
बस जिसे देखने की हसरत में जिंदा है
उसके सिवा सब कुछ।

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तेरे हाथों में मेहंदी किसी और की
माथे पर सिन्दूर किसी और का
आंखों में काजल किसी और का
लेकिन अब भी उनमें तस्वीर मेरी है।

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लहुलुहान हो गई है घाटी,
धर्म पूछ कर मृत्यु बाँटी,
हुकम दिया के कलमा पढ़ लो,
मना किया फिर छलनी छाती,
किस मिट्टी के ये लोग बने है
इतनी नफ़रत कहा से आती,
मासूमों पर रहम ना खाना,
कौन सी पुस्तक यह सिखलाती ,

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"जले हुए खेत" शीर्षक के माध्यम से एक छोटी सी कोशिश की है किसान का दर्द बयां करने की, उम्मीद है, सभी का प्यार और मार्गदर्शन जरुर मिलेगा,
कृपया केप्शन पढ़े और कमेंट जरुर करें👇

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फल के लिए
आने वाले
सुनहरे कल के लिए
बारिश के लिए
लहलहातीं फसल के लिए,
तालाबों में जल के लिए,
नदियों की कल कल के लिए
पेड़ लगाना पड़ता है


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प्यार का मौसम
कब पतझड़ में बदल गया,
जीवन मेरा शजर के जैसे
तिनका तिनका बिखर गया

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