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भगवान शिव की इला नामक कला
माँ नर्मदा जयंती कि आप सभी
को हार्दिक शुभकामनाएं
🙏नर्मदे हर🙏-
जब भी बुझा हुआ महसूस करती हूं
माँ तू ही मुझे रोशनी दिया करती है
जब भी अकेलापन बहुत करीब होता है मेरे
माँ तेरा किनारा ही मेरा सहारा बनता है
माँ हमेशा कहती थी कि मै तुम्हारी ही देन हूं
इसलिए देखो तुम मेरे दिल में बसती हो।
🙏नर्मदा जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं🙏-
नतमस्तक था प्रकृति के आगे
सुलझी गांठे मन के धागे
बैठ घाट किनारे नर्मदा के
फिर खोज अपना अंतर्मन
बहती शीतल जलधारा में
दीपदान कर लिया ये प्रण
समस्या हैं तो समाधान हैं
प्रकृति का ये वरदान हैं
बात हो गई अंतर्मन से
निकल गया मन की उलझन से
उसको पाया खुद के अंदर
जिसको ढूँढा सात समंदर
अच्छा लगा खुद से बात करके
प्रकृति को आत्मसात करके
करके माँ रेवा की पूजा अर्चन
अंधकार का किया विसर्जन
वरद हाथ हो माँ का सर पर
मन संकल्पित नर्मदे हर-
जीवन दायनी, पाप नाशक माँ नर्मदा मैया,
सभी के दुखों को हरने वाली माँ नर्मदा मैया...
नर्मदा जयंती की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं-
तारीख है 8 फरवरी,
तिथि है रथ सप्तमी,
और दिन है मंगलवार,
जो कि है बेहद ही यादगार,
क्योंकि आज है माँ नर्मदा जयंती
जिनके दर्शन मात्र से ही मिल जाती है मन को शांति,
कहते हैं जो पुण्य गंगा में नहाने से मिलता है,
वो नर्मदा के केवल पास जाने भर से मिलता है,
ऐसी तपस्विनी, वैराग्यनि और जीवनदायिनी माँ रेवा को कर रहें हैं नमन सब,
क्योकिं आज है उनका जन्मदिवस जिसे मना रहे हैं भक्त कहकर नर्मदा जन्मोत्सव।— % &-
#माँ_नर्मदा_वृत्तांत
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आदिकाल से रेवांचल में प्रचलित लोककथाएं।
मैकल की घाटी कहती,और कहती जलधाराएं।
समुद्रमंथन से निकला था जब तीव्र विष का प्याला।
पात्र सरल था,तीक्ष्ण गरल था,उठती विष की ज्वाला।
कालकूट के तीव्र प्रभाव देख, भाग गए सब भय से।
त्राहि त्राहि करते सब देव, व्यथा सुनाई मृत्युंजय से।
शिव शम्भू ने विषपान किया, नीलकंठ कहलाये।
तीव्र ऊष्मा हलाहल की शिव से भी सही न जाये।
पिया हलाहल महादेव ने, सृष्टि का हर लिया सब संकट।
उष्णित तन से स्वेद गिरा जहाँ कहलाया अमरकंटक।
धन्य अमरकंटक की भूमि,धन्य अमित वन संपदा।
धन्य हो गिरिराज मैकल, जिसकी पुत्री नर्मदा।
महाकाल के स्वेद से जन्मी, शिवकन्या सुरवाहिनी।
हृदय प्रदेश की जीवनरेखा, रेवा, मोक्षदायिनी।
*पूरी रचना कैप्शन में पढ़िए*
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तुम मैं ओर नर्मदा घाट
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मैं ग्वारीघाट ओर तुम नर्मदा जल हो जाओ
मैं जबलपुर की गली ओर तुम मदन महल हो जाओ
मैं तुम्हें जीना चाहूं, अपने आज में,
ओर तुम मेरे आज का एक एक पल हो जाओ।-
मात हर हर नर्मदे
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हे शिवकन्या,हे वारण्या,अमृततोया, प्योषणी।
क्षीण करो माँ मन कि तृष्णा,शांकरी,कष्टनिवारिणी।।
सुर्यकिरीट शीश सुशोभित मीन नक्र मक्रवाहिनी।
देव दानव पूज्य सबको, हे अमृता सुरवाहिनी।।
तेरे वर से ही विभूषित विंध्या मैकाल सतपुड़ा।
तेरे दर्श से पाप कटते मैं मूढ़ तेरे दर खड़ा।।
मुझ मूढ़ पर उपकार कर अज्ञान का संहार कर।
दुख कलेश सारे हर माँ ऊर्जा का संचार कर।।
हे आत्मपोशी,आशुतोशी, सहस्त्रकोशी प्रवाहिनी।
इस अज्ञानी को ज्ञान वर दे,रेवा मोक्षदायिनी।।
अपभ्रंश से तुंगधारा उठती हैं तुरंग सी।
प्रपात से झंकार उठती बजती है मृदंग सी।।
हे चित्रोत्पला हे मुरंदला हे देव कल्लोलिनी।
सृष्टि में आनंद भर दे,हे आनंद प्रबोधिनी।।
हो त्रुटि तो कर क्षमा हे करभा,मात क्षमाप्रदे।
मन हृदय से गूंज उठती मात् हरहर नर्मदे।।-