नहीं देखा उसे किसी ने सारे कपड़े उतारते हुए
ऐसा तो वह सोच रही थी
नहीं जानती थी कि बल्ब में ही हिडन आई लगी थी
वह तो आईने में अपने निर्वस्त्र मखमली बदन को निहार रही थी उसे क्या पता था उसकी यह हरकत cctv में कैद हो रही थी
(based on true xperience in changing room)-
यूँ ना झाँका कर मेरे गरीब दिल में ,
मेरी हसरतें नंगी रहती हैं |-
बुरका / घूँघट भले ही चेहरा ढक दे,
लेकिन बहुतेरे लोगो की सोच को नंगी कर देता है ..-
क्या करे इन नंगी टांगों का
इनसे किसी की संस्कृति
तो किसी के रमज़ान खतरे में है
कोई बतलाये हमें ये दोस है किस का
नंगी टांगों या नंगी सोच का-
सरीफ़ महफ़िलों का शबाब चढ़ते ही ,
सराफ़त हर एक शाम नंगी हो जाती है..-
फाड़ दे तिरंगा सिलने के लिए कपडा,
आज़ादी जो नंगी घूम रही उसे कपडे पहनाने के लिए।
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नंगी हो चुकी है सियासत यहां
हर कोई अपना अपना हिस्सा नोचने में लगा है-
जब लड़कियों को नंगा किया जाता है,
तो फिर क्यों नहीं तू भी उत्तर फेकती अपनी साड़ी को?
नंगी क्यों नहीं होती तू..?
ताकि जो तिरंगा तेरे पीछे लहराता है,
वो शर्म से झुक जाए,
उसे अपनी औकात याद क्यों नहीं दिलाती तु?
क्यों ममता की मूरत के नाम पे
खुद को लष्मान रेखा में बंद रखा है?-
ये सियासत कैसी बेढंगी हुई ।
चाल उसकी फिर से शतरंजी हुई ।
ब्राह्मणों के सिर पे पटके जूतियाँ ।
आज उनके सामने नंगी हुई ।।
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