मेरी डायरी   (Mishra sakshi -साकेत)
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Joined 15 November 2017


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दिखता तो सब है
पर अंदर मेरे झाँकता कौन है?
ये अंधेरा ,ये उमस और जाने
कितने ही यादों के शीलन ,
रह रह के उठती है आह ,
डर, सुदबूदाहट और बेचैनी
की गंध ,
कहाँ उगता होगा सूरज
मन के भीतर !
जो मिटा सके दिल के
भीतर की सड़न ,
और दे सके एक चमकभरी
शुकुन ,एक प्यारी सी नींद और
सिरहने एक सुनहरा ख्वाब ।

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तुम्हारे न होने का भी गम न था
सिलवटे तो बनती बिगड़ती रहेंगी
फिर भी माथे पर
ठहर सके जो बीते यादो मे कभी
ऐसा कोई वक़्त भी तो न था

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हम बैठे बुनते रहे ख़्याल उनका
वो जेहन से निकले और भीड़ मे गुम हो गये

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24 JUL 2024 AT 6:24

एक पुरुष को चाहिए था घर .....
स्त्री गृहणी बन गई ,
एक पुरुष को चाहिए था स्नेह ......
स्त्री मां बन गई ,
एक पुरुष को चाहिए था प्रेम ......
स्त्री पत्नी बन गई ,
एक पुरुष को चाहिए था हथियार......
स्त्री बहन बन गई ,
लेकिन पुरुष वही रहा ,
हर रिश्ते में पुरुष बनकर
वो दिखाता रहा स्त्री को.....
हर किरदार मे अपना पुरुषार्थ ।

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11 JUN 2024 AT 11:13

छूटेगा धीरे धीरे पीछे बचपना मेरा
आगे बढ़ते मेरे कदमो की यही तो कुर्बानी होगी

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11 JUN 2024 AT 11:05

आँखों मे नमी कंधो पर भविष्य
ये शुरुआत है मेरे इम्तिहानों का
कदम नन्हें ही सही
पर मुक़बला है ,ए ज़िंदगी
सब से आगे निकल जाने का

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8 JUN 2024 AT 20:16

है प्रभु थामे रखना मेरे आशाओं की डोर
कि दुनियां के भंवर मे संसय बहुत है।

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8 JUN 2024 AT 20:05

है
यक़ीनन ये इंतज़ार भी तुम्हारे है

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29 MAY 2024 AT 22:12

कुछ खिलते फूलो जैसा,
बहती हवाओ जैसा ,
निकलते कपोलों जैसा
या उगते सूरज जैसा है
जो भी है ,जैसा भी है
एक समय के बाद
सबका अंत होना निश्चित है ना ?

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29 MAY 2024 AT 21:56

हर दुआ मे हर नफ़ल मे।
तुम महसूस तो करो कभी
मेरी हर लफ्ज़ मे तेरा ही तो जिक्र

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