दिखता तो सब है
पर अंदर मेरे झाँकता कौन है?
ये अंधेरा ,ये उमस और जाने
कितने ही यादों के शीलन ,
रह रह के उठती है आह ,
डर, सुदबूदाहट और बेचैनी
की गंध ,
कहाँ उगता होगा सूरज
मन के भीतर !
जो मिटा सके दिल के
भीतर की सड़न ,
और दे सके एक चमकभरी
शुकुन ,एक प्यारी सी नींद और
सिरहने एक सुनहरा ख्वाब ।
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ख्वाबों की शहजादी हूँ आशिकों से नफरत है..... read more
तुम्हारे न होने का भी गम न था
सिलवटे तो बनती बिगड़ती रहेंगी
फिर भी माथे पर
ठहर सके जो बीते यादो मे कभी
ऐसा कोई वक़्त भी तो न था
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एक पुरुष को चाहिए था घर .....
स्त्री गृहणी बन गई ,
एक पुरुष को चाहिए था स्नेह ......
स्त्री मां बन गई ,
एक पुरुष को चाहिए था प्रेम ......
स्त्री पत्नी बन गई ,
एक पुरुष को चाहिए था हथियार......
स्त्री बहन बन गई ,
लेकिन पुरुष वही रहा ,
हर रिश्ते में पुरुष बनकर
वो दिखाता रहा स्त्री को.....
हर किरदार मे अपना पुरुषार्थ ।
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छूटेगा धीरे धीरे पीछे बचपना मेरा
आगे बढ़ते मेरे कदमो की यही तो कुर्बानी होगी
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आँखों मे नमी कंधो पर भविष्य
ये शुरुआत है मेरे इम्तिहानों का
कदम नन्हें ही सही
पर मुक़बला है ,ए ज़िंदगी
सब से आगे निकल जाने का-
है प्रभु थामे रखना मेरे आशाओं की डोर
कि दुनियां के भंवर मे संसय बहुत है।-
कुछ खिलते फूलो जैसा,
बहती हवाओ जैसा ,
निकलते कपोलों जैसा
या उगते सूरज जैसा है
जो भी है ,जैसा भी है
एक समय के बाद
सबका अंत होना निश्चित है ना ?
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हर दुआ मे हर नफ़ल मे।
तुम महसूस तो करो कभी
मेरी हर लफ्ज़ मे तेरा ही तो जिक्र
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