कुछ भी तो नहीं सस्ता , इस दुनियां की खर्वट में...
न रिश्ते , न अपनें
न नींदे , न ही सपनें
न छत , न आकाश
न सूर्य, न ही प्रकाश
कुछ भी तो....
न रोटी ही सस्ती, न बोटी ही सस्ती ,
न खुद के लिए खिलखिला कर के हंसना ,
न मनमीत के दिल के कोने में बसना
कुछ भी तो....
न सच के लिए जान देने की चाहत ,
न मुर्दों के कब्रों से उठने की आहट ,
न अपने हुनर की नज़र भर नुमाइश ,
न मुट्ठी में तारों को भरने की ख़्वाहिश ,
कुछ भी तो....
न शीतल पवन के झकोरों की ठंडक ,
न मेघों की सुंदर सजीली लिखावट ,
न ममता की परछाइयों में बिछौना ,
न नन्हें से हाथों में बजता खिलौना ,
कुछ भी तो...
न अंगड़ाइयां ले के चलती जवानी ,
न बूड़े बुजुर्गों की लम्बी कहानी ,
न संन्यास सस्ता , न सस्ती तपस्या ,
बहुत कीमतों से निहित है विपश्या ,
कुछ भी तो..
न जीवन ही सस्ता न मुक्ति ही सस्ती ,
न वैराग्य सस्ता न भक्ति ही सस्ती ,
कुछ भी तो नहीं सस्ता, इस दुनियां की खर्वट में,,,,,
# खर्वट ( बाजार)
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