KAUSHAL KISHOR PANDEY   (Kaushal Kishor Pandey)
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Joined 8 May 2018


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Joined 8 May 2018
11 MAR AT 23:33

अब भी गुज़री हुई उस बात पर मलाल क्यों है,
हर इक जवाब में चुभता हुआ सवाल क्यों है ...
तुम तो कहते थे कि तन्हाई में बहुत खुश हूं मैं,
मगर आंखों का रंग इतना सुर्ख़ लाल क्यों है ....

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3 MAR AT 23:14

एक तरफा प्यार....
है कच्चे कांच का टुकड़ा
जो खुशफहमी में रहता है
कि भर लूंगा मैं प्याला बन के
दुनिया भर की खुशियां अपने दामन में....
दिवा का स्वप्न है जो दोपहर में टूट जाता है,
खुदी को छल के खुद ही को लूट जाता है..


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2 MAR AT 22:42

बेवजह यूं ही.....
सताने की वज़ह ,
इन चिराग़ों को बुझाने की वज़ह ...?
तोड़ कर रख ही दिया जब दिल मेरा ,
पूछते हो रूठ जाने की वज़ह ...?

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1 MAR AT 22:36

रात है या ...कि कोई पहरा है,
बादलों का यूं रंग गहरा है,
यूं तो हर रोज ही जलाता
चांद क्यों आज इतना ठहरा है...
रात है या...
मैंने सोने की लाख कोशिश की ,
पर कोई गूंज यूं जगाती रही
जैसे कि चीख हो उदासी की ,
जिसके सीने में ज़ख्म गहरा है
रात है या.....

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1 MAR AT 22:25

भले ही दूर से ही गुजर जाओ,
कभी कहीं भी न हो कर करीब इस दिल के...
यूं ही क्यों झांकते हो सपनों में ,
सामने भी कभी आ जाया करो..
ऐ मेरे दोस्त से दुश्मन...रहबर ,
नज़र तो कभी मिलाया करो....

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5 JAN AT 23:54

कुछ भी तो नहीं सस्ता , इस दुनियां की खर्वट में...
न रिश्ते , न अपनें
न नींदे , न ही सपनें
न छत , न आकाश
न सूर्य, न ही प्रकाश
कुछ भी तो....
न रोटी ही सस्ती, न बोटी ही सस्ती ,
न खुद के लिए खिलखिला कर के हंसना ,
न मनमीत के दिल के कोने में बसना
कुछ भी तो....
न सच के लिए जान देने की चाहत ,
न मुर्दों के कब्रों से उठने की आहट ,
न अपने हुनर की नज़र भर नुमाइश ,
न मुट्ठी में तारों को भरने की ख़्वाहिश ,
कुछ भी तो....
न शीतल पवन के झकोरों की ठंडक ,
न मेघों की सुंदर सजीली लिखावट ,
न ममता की परछाइयों में बिछौना ,
न नन्हें से हाथों में बजता खिलौना ,
कुछ भी तो...
न अंगड़ाइयां ले के चलती जवानी ,
न बूड़े बुजुर्गों की लम्बी कहानी ,
न संन्यास सस्ता , न सस्ती तपस्या ,
बहुत कीमतों से निहित है विपश्या ,
कुछ भी तो..
न जीवन ही सस्ता न मुक्ति ही सस्ती ,
न वैराग्य सस्ता न भक्ति ही सस्ती ,
कुछ भी तो नहीं सस्ता, इस दुनियां की खर्वट में,,,,,
# खर्वट ( बाजार)

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5 JAN AT 22:36

मैं इसके उसके सभी के हिस्से का ग़म ले आया ,
ख़ुशी-ख़ुशी में मैं खुशियों का वहम ले आया।
वो मुस्कराते हुए नश्तरें फिराते रहा ,
मैं भी हंस कर उनके दिए सारे ज़ख़्म ले आया ।

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12 DEC 2023 AT 22:09


कुछ स्याह यादें,,,
स्याह सपने,,,,
चंद काले गुज़रे लम्हे,,,

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24 JUN 2023 AT 22:31

कभी मंदिर की मूरत पर मुझे सजना लुभाता है,
कभी शमशान में लाशों के संग जलना भी आता है।
कुचल कर रौंद भी डालो मगर खुशबू ही आयेगी ,
मैं गुल हूं मुझको हर इक हाल में हंसना सुहाता है ।

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30 MAY 2023 AT 22:53

तो चलो दो-दो हाथ कर लें इससे

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