प्रेम मांगते हुए,
दुनिया का सबसे दीन भिक्षुक हो जाना;
और देते हुए…दानवीर कर्ण।-
तुम कर्ण हो , सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हो ।
अंगराज , वासुसेन , सूर्यपुत्र हो ...
कुंती के ज्येष्ठ लाल , राधा का राधेय हो ।
कवच कुंडल के संग पैदा हुआ ,
राधा - अधिरत ने है पालन किया ।
था पांड्य वंश का ज्येष्ठ कुमार ,
पर नियति ने तो , कुछ और ही लिखा था ।
जीवनभर सहना पड़ा , शुद्र होने का अपमान
फिर भी अपने कर्मो से , मिला अतुलनीय सम्मान ।
दृढ़ निश्चय से विपरीत परिस्थितियों में उसने ,
पाया धनुर्विद्या का परम ज्ञान ।
पर इंद्र की छल कपट से , पाया परशुराम जी का श्राप
जब जरूरत थी उस विद्या की , तब स्मरण
नही कर पाये ।
कवच कुंडल का दान कर तुमनें , सच्चे मन
और वीरता से युध्द किया
कुंती को देकर वचन , ज्येष्ठ भ्राता का कर्तव्य निभाया ।
तुम कर्ण हो , सच्चे गुरुभक्त हो ,
अतुलनीय हो राधेय ...
तुम सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर , सर्वश्रेष्ठ दानवीर ।
तुम थे महान वीर योद्धा , उस प्रलय महाभारत की ....-
आसां तो नहीं था मोहब्बत में बिछड़ जाना
वक़्त ने ख़्वाहिश की और हम कर्ण हो गए-
गोरे और काले में मैं श्याम वर्ण चुनूंगा
तुम ढूंढ लेना सुदामा मैं मित्र कर्ण चुनूंगा-
दान में हम भी अंगराज कर्ण से कम नहीं महादेव,
लेकिन मेरे पास धन नही है केवल मदद का हाथ है
जो में सदेव आगे कर देता हूं,
ओर शेष बचा मेरा शरीर इसे तुझ पर रमने के लिए
भस्म होने का इंतजार कर रहा हूं।-
:दानवीर कर्ण:
उस चिर-परिचित विचलित मन में भी
प्रश्नों का प्रहार हुआ था,
"राध्ये" को जब अपने जन्म का ज्ञान हुआ था!
वो सूर्य पुत्र था, एक ओर जहाँ यह जानकर अभिमान हुआ था,
वहीं "कौन्तेय" होने पर उसका ह्रद्य़ तार-तार हुआ था!
कहने को तो विश्व में
उसका बहुत नाम हुआ था, पर,
जीवन में हर पल उसका सूत पुत्र कहकर अपमान हुआ था!
इस परशुराम शिष्य के कुल का,
जब-जब विश्व को भान हुआ था
हर क्षण, हर पल उस योद्धा की सारी क्षमता का अपमान हुआ था!
महामहिम ने भी जिसको सिर्फ सूत पुत्र ही माना था,
धर्मराज ने भी जीवनभर, जब कुल को ही धर्म जाना था,
गुरु द्रोण ने भी, विद्या देने से जब अपना मुँह मोड़ा था,
सोच कर देखो ज़रा, इन सब ने उस योद्धा के हृदय को
कितनी बार तोड़ा था!
पर इन संघर्षो से ही उसने,
अपनी जीवनधारा को जोड़ा था
आज उसको भान था, अपने कुल का ज्ञान था,
पर, आज उसके हृदय में एक अलग ही तूफान था
जानता था वो यह युद्ध,
उसके जीवन का दान था!
पर, हृदय को टटोलकर और द्रण मन से बोलकर
स्वयं अपने लिए, मृत्यु के द्वार खोलकर,
दानवीर ने दिया ,
अपना यह अंतिम दान था!
क्या अब भी कोई संदेह हैं,
कि क्यों "कर्ण" सबसे महान था!!!
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दानविरता प्रसिद्ध थी कर्ण की,
इंद्र कुंती ने लाभ लिया
कवच कुंडल मांगा इंद्र ने,
कुंती ने पुत्रों का जीवन लिया-
मुझको अंगराज कर्ण के लिए
कुछ लिखना हैं कोई मदद करेगा क्या
हिमान्शु अग्रवाल-
अपनी श्रृद्धा को श्रद्धाविहीन मत होने दीजिए,उस श्रद्धा के दान को किसी नाले में बहने से अच्छा है उसे किसी ज़रूरतमंद के पेट तक पहुंचाया जाए।
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भुजाओं में था जिसके दम
दिल से था दानवीर
दे दिया था पल भर अपना
कवच कुंडल, जो था उसके
जीवन का आधार,
जानते हुए, शल रहा इन्द्र
बन के भिक्षु, फिर भी सौंप
दिया उसके हाथो अपनी विजय
ऐसे थे सूर्य पुत्र
वीर कर्ण महान-