दसलक्षण महापर्व का आठवां दिन- "उत्तम त्याग धर्म"
उत्तम त्याग धर्म अनुपम, पर पदार्थ का निश्चय त्याग।
अभय शास्त्र औषधि आहार हैं, चारों दान सरल शुभ राग।
जीवन में त्याग के बिना कुछ भी पाना आसान नहीं है
एक साँस लेने के लिए भी,पहली साँस छोड़नी पड़ती है।
जिस व्यक्ति का जितना बड़ा लक्ष्य होता है,उसको त्याग भी उतना ही बड़ा करना पड़ता है।
"खुशी" के लिये बहुत कुछ इकट्ठा करना पड़ता है, ऐसा हम समझते हैं।
किन्तु हकीकत में"खुशी" के लिए बहुत कुछ त्यागना पड़ता है।त्याग सहज रूप से होना चाहिए अपने आप ही छूट जाना चाहिए, उस सुख का त्याग कर देना चाहिए, जो किसी के दुख का कारण बनता हो।
जीवन मे कितना कुछ खो गया, इस पीड़ा को भूल कर, क्या नया कर सकते है,इसी में जीवन की सार्थकता है।
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एक सक्षम राष्ट्र तभी बन सकता है जब हम त्याग का महत्व समझेंगे
जिन्होंने अपने प्राणों का त्याग कर हमें हमारे अस्तित्व को बचाए रखा
हमें अपने पुर्वजों पर गर्व करना चाहिए।
जय हिन्द वंदे मातरम 🚩
जय श्रीराम 🙏 जय जिनेन्द्र 🙏-
*दस धर्म (आत्म प्रक्षालन पर्व)*
धारण करे क्षमा को जो मैत्री भाव जागृत होए
जीवन की कुटिलता मिटा सो उत्तम क्षमा होए ।।1।।
मर्दन करे जो मान का विनय भाव जागृत होए
जीवन मे विन्रमता आये सो उत्तम मार्दव होए ।।2।।
कपट मिटे मन से निष्कपट भाव जागृत होए
जीवन मे सरलता आये सो उत्तम आर्जव होए ।।3।।
झूठ मिटे जीवन से सत्य का भाव जागृत होए
द्वार खुले मोक्ष के सो उत्तम सत्य धर्म होए ।।4।।
लोभपन निर्लोभी हो संतोष भाव जागृत होए
परम शांति जीवन मे सो उत्तम शौच होए ।।5।।
इंद्रिय को वश करे संयम का भाव जागृत होए
जीवन को सफल करे सो उत्तम संयम होए ।।6।।
शुद्ध करे जो तन मन तप का भाव जागृत होए
जन्मों के कर्म कष्ट मिटे सो उत्तम तप होए ।।7।।
प्रिय अप्रिय को छोड़े निरवृति का भाव जागृत होए
देवता भी नमन करे सो उत्तम त्याग धर्म होए ।।8।।
अंतर बाहर परिग्रह त्याग सो अकिंचन जगृत होए
परमपद जो वरण करे सो उत्तम अकिंचन होए ।।9।।
पवित्र करे जो काय,सात्विक विचार जगृत होए
वोही मोक्ष लक्ष्मी पाएं सो उत्तम ब्रह्मचर्य होए ।।10।।
"गुरु प्रशस्त" कहे आत्म प्रक्षालन हेतु आते ये पर्व है महान
"वैभव" दस धर्म अंगीकार कर करो अपना आत्म कल्याण ।।-
।। दसलक्षण पर्व का पांचवा दिन ।।
! उत्तम सत्य !
ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्माङ्गाय नम:
सत्यधर्म सर्वधर्मों में प्रधान है, सत्य पृथ्वी तल पर सबसे श्रेष्ठ विधान है। सत्य, संसार समुद्र को पार करने के लिए पुल के समान है और यह सब जीवों के मन को सुख देने वाला है।-
!! आज दसलक्षण पर्व का नौवा दिन है !!
!! उत्तम अकिंचय धर्म !!
आत्मा के अपने गुणों के सिवाय जगत में अपनी अन्य कोई भी वस्तु नहीं है इस दृष्टि को रखना उत्तम अकिंचन धर्म है।
पिता, माता, भाई, बहिन, पुत्र, पति, पत्नी, मित्र से ममता करता है। मकान, दूकान, सोना, चाँदी आदि वस्तुओं से प्रेम जोड़ता है। इसी मोह ममता के कारण यदि अन्य कोई व्यक्ति प्रिय वस्तु की सहायता करता है तो उसको अच्छा समझता है, और जो इसकी प्रिय वस्तुओं को लेशमात्र भी हानि पहुँचाता है उसको अपना शत्रु समझकर उससे द्वेष करता है, लड़ता है, झगड़ता है इस तरह संसार का सारा झगड़ा संसार के अन्य पदार्थों को अपना मानने के कारण चल रहा है।अन्य पदार्थों की इसी ममता को परिग्रह कहते हैं। मिथ्यात्व का सबसे बड़ा कारण परिग्रह ही है ।-
!! दसलक्षण पर्व का दसवां दिन !!
! उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म !!
ब्रह्मचर्य अर्थात ब्रह्म स्वरूप आत्मा में चर्या करना, लीन होना वास्तविक उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है।
इसके साथ बाहर में स्व-स्त्री/पति में संतुष्ट होना, वह व्यवहार ब्रह्मचर्य अणुव्रत नाम पाता है।
अन्धा मनुष्य चक्षु से ही नहीं देखता है किन्तु विषयों में अंधा हुआ मनुष्य किसी भी प्रकार से नहीं देखता है।
ॐ ह्रीं उत्तमब्रह्मचर्यधर्माङ्गाय नम:-
!! दसलक्षण पर्व का सातवां दिन !!
!! उत्तम तप !!
‘इच्छानिरोधस्तपः’
अर्थात इच्छाओं का निरोध/अभाव/नाश करना, तप है।
मात्र देह की क्रिया का नाम तप नहीं है अपितु आत्मा में उत्तरोत्तर लीनता ही वास्तविक ‘निश्चय तप’ है।
* तप 12 प्रकार का होता है *
प्रायश्चित, विनय, वैय्यावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग, ध्यान
अनशन, अवमौदर्य, वृत्ति-परिसंख्यान, रस-परित्याग, विविक्त-शैय्यासन, काय-क्लेश-
!! दसलक्षण पर्व का आठवां दिन !!
!! उत्तम त्याग !!
जो वस्तु अपनी नहीं है, उसमें ‘मेरा’पना छोड़ना, त्याग कहलाता है। वह त्याग जब सम्यग्दर्शन के साथ होता है, तब ‘उत्तम त्याग धर्म’ कहलाता है।
त्याग परायी वस्तु का किया जाता है, दान अपनी वस्तु का किया जाता है।
राग-द्वेष का त्याग, तथा आहार , औषधि , अभय और ज्ञान का दान कहा गया है। तथा ज्ञानी जीव दोनों प्रकार के दानों को करता है।
ॐ ह्रीं उत्तमत्यागधर्माङ्गाय नम:-
आज दसलक्षण महापर्व का दूसरा दिन है।
! उत्तम मार्दव धर्म !
अर्हन्त भगवान् जिन 18 दोषों से रहित हैं उनमे एक है 'मद'
मद के 8 प्रकार होते हैं :-
ज्ञानं पूजां कुलं जाति, वलमर्द्वि तपो वपुः ।
अष्ठा वाश्रित्य मानित्वं, स्मयमा दुर्गतस्मया: ।।
१ - ज्ञान का मद,
२ - पूजा/प्रतिष्ठा/ऐश्वर्य का मद,
३ - कुल का मद,
४ - जाति का मद,
५ - बल का मद,
६ - ऋद्धि का मद,
७ - तप का मद और
८ - शरीर/रूप का मद
ऊपर कहे आठ प्रकार का मद न करना उत्तम मार्दव धर्म है !-