सीरत की सुंदरता नहीं परखी
क्यों सूरत पर रीझ गए
रूप रंग सब ढल जाते हैं
तुम भूल हर तज़वीज गए
ये तुम क्या कर बैठे
हीरा तज प्रस्तर पर पसीज गए-
ये आँखें दिल की दहलीज़ होती हैं
पर लगाव बहुत बुरी चीज होती हैं
हर कोई अपना राज छुपा रहा हैं
बेवजह ही बदनाम कमीज़ होती हैं
भीड़ में तन्हाई का एहसास करा दे
यह ख़ुदगर्जी बड़ी नाचीज होती हैं
माँ की दुआ साथ हैं साये की तरह
पर ख़ुशफ़हम मेरी ताबीज़ होती हैं
बातों-बातों में बहुत कुछ हो जाता हैं
दर्द की वज़ह हसीं तजवीज होती हैं
तड़पाती जिंदगी हैं 'जीत' मौत नही
पर जिंदगी सबको अजीज होती हैं
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रे सखया....
बेरीज, वजाबाकी, गुणाकार, भागाकार..
पाहून गणिती संज्ञा, शरीर पडते थंडगार..-
मना,
तु पुन्हा पडु नयेस म्हणून नाही,
पण पडलासच तर लागू नये म्हणून ही तजवीज, हो!-
याद करो वो दौर जब आपके नूर-ए-दिल ने हमें आशिक बना दिया,
आपके दीदार-ए-कला पर खर्च हर एक पल को वाजिब बना दिया,
जब एहसास दिलाया आपकी उल्फत के राद-ए-अमल ने मुझे तभी से,
लगता है खुदा ने मुझे आपसे तजवीज करने के लायक बना दिया।
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