जैसे एक साल लगता हैं नये साल को आने में
अभी कुछ और वक़्त लगेगा उसको भुलाने में
दिल्लगी करना उससे तुम मग़र संभल के जरा
क्योंकि उसका कोई सानी नही हैं मुँह फुलाने में
जब भी आता हैं वो दिल के तार छेड़ जाता हैं
इसके अलावा कोई दिक्कत नही उसे बुलाने में
मेरे सब राज ख़बर बनके अख़बार में आ जायेंगे
इस बात का बहुत डर हैं मुझको तकिया धुलाने में
थपेड़े खा-खा कर अब वो बड़ी चटान बन गया हैं
थक गयी हैं सब लहरें उसको हिलाने-डुलाने में
एक-एक करके सब लोग बिछड़ते जा रहे हैं हमसे
क्या मजा आता हैं न रोते हुए को और रुलाने में
देख लेता हैं जब किसी जाते हुए दुल्हन की डोली
उस रात बहुत वक़्त लगता हैं 'जीत' को सुलाने में-
Poet by passion....!
#Original contents.
#jitumaurya18@gmail.com
#Pl... read more
दिल भी भला क्या कोई देने की चीज़ हैं
आप तो आशिक़ हैं उसको जान दीजिए
आपकी बातों से आ रही हैं फ़रेब की बू
ऐसा कीजिए अब आप मेरा कान दीजिए
तेरा दुश्मन भी हँसेगा और ख़ून थूकेगा
खिदमत में बुलाकर उसको पान दीजिए
प्यार की भाषा सबको प्यारी लगती हैं जी
सम्मान चाहिए तो सबको सम्मान दीजिए
कोई चाह कर भी आपसे अदावत ना रखें
ख़ुद को कुछ ऐसी बड़ी पहचान दीजिए
सुना हैं कि आपको पैसे की बहुत गर्मी हैं
ठंड बहुत हैं गरीबों को कुछ दान दीजिए
जिस्म की जगह दिल मिलने लगेंगे 'जीत'
आप चाहे तो लोहे की चादर तान दीजिए
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किसी से बिछड़के कभी कोई मरता नही हैं
आज मैं उसका ये भरम तोड़कर जाऊंगा
उसने छोड़ा हैं मुझको जिस जहाँ के लिए
उस जहाँ को ही अब मैं छोड़कर जाऊंगा
जिसने मुझको कहलाया हैं जहाँ भर से पागल
उसके नाम में बेवफ़ा लफ्ज़ जोड़कर जाऊंगा
वो जो अंदर मग़रूर ए खुदा बन बैठा हैं
उसके दर को अपने सर से फोड़कर जाऊंगा
उस गली में मुहब्बत की बू तक ना जाये 'जीत'
मैं उन हवाओं का हर रुख मोड़कर जाऊंगा
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लड़ ही लिया करो
क्योंकि खामोशियां
उदासियां लाती हैं
और उदासियां मौत,
जो मैं नही चाहता हूँ।-
तुमने बहुत देर कर दी आने में 'जीत'
दुनिया के रास्ते से जो होकर आये हो
दिल के रास्ते ये फासला बहुत कम था...
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इस कदर उलझा रहा उसके जाने के बाद,
कि ख़ुद को खोने का ग़म भी मना ना सका,
दुनिया भर की तरकीबे कुछ काम ना आई;
कि भूलकर भी मैं उसको भूला ना सका.-
उसका नम्बर भी हैं मेरे पास पर अब बात नही कर सकता,
वक़्त बहुत बर्बाद किया हैं पर जिंदगी बर्बाद नही कर सकता.-
तुमने कहा कि हम तुझ जैसों की हज़ार लाइने लगा देंगे
उफ़ ! ये तो हमकों मालूम ही ना था कि तुम बाजारू चीज़ हो.-
जो हद में होता उसे रिश्ता कहते हैं,
जो बेहद में होता हैं वो होता हैं प्यार.-
तेरी याद मेरे सीने में शोला जैसे भड़के
तुझे नींद कैसे आती हैं मुझसे बिछड़के
दुनिया की बातों से डरके दामन ना छुड़ाना
कोई पता नही जुड़ा रे साख से बिछड़के
यूँ तो मुसाफिरों से भरी पड़ी हैं रहगुज़र
तु जो संग नही हैं तो सूनी पड़ी हैं सड़के
मिलते ही तुझसे जो तीर मुझे लगा था
वो बन गया हैं नासूर अंदर तक गड़के
जब जब घटाये छाए मेरी आस को बढ़ाये
लग जाये तु सीने से हाय बिजली कड़के
शायद आज उसकी कोई ख़बर आये 'जीत'
जाने क्यों सुबह से मेरी बायीं आँख फड़के
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