श्रृंगार की बात ना करो हमसे
मेरे गाल पे डिम्पल है बचपन से।-
सादगी ही है औरत का सच्चा सृंगार
और तेरे डिंपल ने तो कितने को लूट लिया होगा यार-
ये जो तेरे गाल की डिम्पल है, गजब कमाल कर जाती है।
जब तुम मुस्कुराती हो, मेरे दिल में हलचल सी मच जाती है।।-
तुम्हारी चहकती आँखें
मासूम सी मुस्कान,
गालों पर पड़े डिम्पल
और बातें करते वक्त
नजरें मिलने पर वो
तेरा शरमा जाना
हाए! ऐसे में कोई
कैसे दिल ना हारे।-
तुम्हारे लबो को
कलम मचल उठी चलने को
पर चल कहाँ पाई वो
तुम्हारे गालो के डिम्पल मे
बेचारी फ़सकर रह गयी.-
तेरे हुस्न वर्गा और दूजा कोई नी होना..
तेरे 2 डिम्पल te एक तिल दा (की) कहना..
Jihadi (jisdi) भी pade निगाहें tujh pe(te)
us te fir nahi sabar hona..
चांद से मुखड़े te डिम्पल सी smile ☺..
नजरो toh बचन layie,
खुदा तो एक ठोड़ी te तिल le aayie.-
«--आखरी खत --»
मुझसे जो शिकायते हैं ,
खुद से ही तू कर लेना ।
याद कभी आए मेरी ,,
तू खुद की बाहों में रो लेना ।।
तेरा मेरा मिलना डिम्पल ,
कोई इत्तेफ़ाक ना था ।
याद तुझको करते करते ,
मेरा भी चंगा हाल ना था ।।
एक तरफ़ थी शान वतन की ,
एक तरफ़ संग तेरे चलना ।
बस इस बार रोक ना जाने से ,
अगले जन्म हमें फ़िर मिलना ।।
चार कदम होते जीवन के ,
वो तो मेनु कर लेना ।
चलना था तेरे संग मुझको ,
पर तू तेरे हिस्से का चल देना ।।
-उमेश
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जब आँधी आएगी तब कुछ अच्छा नहीं होगा
कहर एक बार उसका खाके तो देख होश आ जाएगा।-
बचपन में मैं डरता था गहराई से
डरता था कि यदि कभी गिरा तो खो जाऊंगा खाई में
रात में अचानक जाग जाता था मैं जब कभी सपने में गिरता था मैं बिस्तर के कोने से
फ़िर इक रोज़ तेरे गालों में पड़ा डिम्पल देखा, गहरा था बिल्कुल मेरे सपनों की खाई की तरह
पर पता नहीं क्यों यह उतना खौफनाक नहीं था
उस दिन मैंने जाना कि गहरी खाई भी कितनी ख़ूबसूरत हो सकती है-