Umesh Sonarthi   (Umesh Sonarthi (र.Vesh))
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लिखना जरुरी हैं , क्योंकि व्यक्तित्व में कुछ हिस्सा शब्दों का भी होता हैं ।😊
Joined 3 June 2020


लिखना जरुरी हैं , क्योंकि व्यक्तित्व में कुछ हिस्सा शब्दों का भी होता हैं ।😊
Joined 3 June 2020
12 JAN 2023 AT 20:43

कौन कहता हैं इश्क़ बिखरता नहीं
मैं खुद को बदनाम करने आया हूँ !
भरे बाज़ार में रख तेरी यादे
नीलाम करने आया हूँ !!

-©उमेश

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8 JAN 2023 AT 23:22

अब कुछ दिन
बस तन्हा सा छोड़ दो मुझे ,
कि टूटा हूँ,
बस टूटा ही छोड़ दो मुझे...

फ़िकर दिखानी हैं
तो बेफ़िकर छोड़ दो मुझे ,
माना इश्क़ में हूँ
तो इस नशे में छोड़ दो मुझे...

-Umesh

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20 DEC 2022 AT 22:23

Ye hawaae, ye fizaye,
ye mausam mere shahar mei Kyo hai
Jo tu Nahi to fir
Teri yaade mere zahan me Kyo hai ?

-umesh

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26 NOV 2022 AT 14:45

Ho roothe Tum , to manau kese
Haq he hi nhi to jatau kese
Unhe lgta h ki Ab fikra nhi mujhe
Kher vo he hi nhi to dikhau kese

-©umesh

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4 NOV 2022 AT 23:06

Tum Kal na dikhi
Arsa lag raha he
Bate Nahi hui tumse
Dil bhara lag raha he
Besudh khat likhta ja rha hu benaam
Kambakht dil Tera pata likh rha he !

-©umesh

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30 OCT 2022 AT 14:45

जब कभी सफ़र में टकरायेंगे
सब भुला कर तुम्हें सीने से लगाऐंगे

तू गया तो मुझ पर क्या गुज़री
ये छोड़ तुझे सब बताऐंगे !

-उमेश

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30 OCT 2022 AT 14:34

कितने लाजवाब हो तुम
लगता हैं कोई ख्वाब हो तुम
जैसे कोई खुली किताब हो तुम
पुरानी सी कोई शराब हो तुम
दिखने में कोई गुलाब हो तुम
हर प्रश्न का मेरे जवाब हो तुम
हर गणित का मेरा हिसाब हो तुम
वो ठहर जाने वाला तालाब हो तुम
मेरी सूरत का एक नकाब हो तुम
खुशियो का कोई सैलाब हो तुम
जो पा लू तो एक खिताब हो तुम
जैसे भी हो नायाब हो तुम

-umesh

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17 SEP 2022 AT 23:16

ये आंखे , नाक
ये कान में घुमाव ,
ये छाती में दरार,
ये पेट में दबाव ,
ये पिछे तेरे उठाव ,
ये तेरे पैरो में अलाव ,
ऎ मेरे यार तुझमें
कितने हैं मुकाम !

-आवारा

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22 AUG 2022 AT 0:35

जाना ही था तो आयी ही क्यों
उम्मीदें खुद से लगवायी ही क्यों
इतने ख्वाब दिखाए ही क्यों
नींद से हमें जगाया ही क्यों
गऱ सोना था गैर की बाहों में
बिस्तर मेरे साथ लगाया ही क्यों ?

-उमेश

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7 AUG 2022 AT 19:20

बस एक झलक के आसा में हम गली में तुम्हरे आते हैं
हम कहिये देंगे अब एक दिन हम तुमको बहुते चाहते हैं

ऊ सोमवार के दिन रहे हम भाँग धतूरा ले भीगे
शंकर जी के मंदिर में दर्शन हो गए ऊ देवी के
हम उनकी सूरत देखें तो पूजा की थाली छुट गये
जो बची खुची जागीर रहे ऊ हँस दिये दिल लूट गये
ऊ दिन हम जब भी याद करे तो मंद मंद मुस्काते हैं
हम कहिये देंगे अब एक दिन हम तुमको बहुते चाहते हैं

हम ढूंढ ढूंढ पागल हो गये सब हड्डी पसली हिल गये
जब छोड़ दिये उम्मीद त फ़िर सब्जी मंडी में मिल गये
हम साईकिल से पैदल हो गये और दू किलोमीटर नाप गये
जब पिछे घूम के ऊ देख लिये भद्दर गर्मी में काँप गये
ऊ दिखत हैं कबहूँ कबहूँ लेकिन हम चक्कर रोज़ लगाते हैं
हम कहिये देंगे अब एक दिन हम तुमको बहुते चाहते हैं
-उमेश

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