मोटरों...
तोड़ देंगे बदन का एक-एक कोना,
जहां दिख जाए बाबू-शोना।
-बजरंग दल कहिन 😐-
सुनो आज हमने डांडिया खेल डाला
मजनू की खाल मांग रही थी मसाला
पहले जी भरके ठुकाई करी
इधर घूंसा उधर लात धरी
नवरात्रों में भी कमबख्त छेड़ रहा था
मुझे भी चण्डिका का क्रोध भरा था
जैसे ही छूने को आगे बडा़
दे घुमा दे पटक लठ्ठ बरसा दिया
अब देखूं कैसे हाथ लगायेगा
कैसे हुई थी ठुकाई याद आ जायेगा-
झुकी झुकी सी नज़र उनकी सवाल करती है
उठ जाए एक बार गर उफ्फ बवाल करती है
दूर रहकर तो वो सताती है बेइंतेहा मुझे वो
पास आए रात में तो ज़ालिम बुरा हाल करती है-
प्यास तू आज इनकी बुझाने दे
लबों को अपने मेरे लबों में समाने दे
बहुत तड़प चुके हम एक दूजे के लिए
आज की रात तू मुझे हद से गुजर जाने दे-
ज़िददी और ढीठ
टाइप के बच्चे
उपहार या मनुहार नहीं
ठुकाई-पिटाई से ही
क़ाबू में आते थे।
☺️सही था वो दौर☺️
-
एक तरफ पढ़ाई है ,
एक तरफ तन्हाई है ।
दोनों ने मिलकर अब ;
ज़िन्दगी की कर रही ठुकाई रे ।-
bass kro mere jazbaato
ko jagao mat
agar Jazbaat mere
kaabu me na rhe
to dard bht hoga
or sukun bhi
milega bht-