नित नई राहें दिखाते।
ज्ञान की बातें सिखाते।
राह में जब हम गिरे तो।
युक्ति उठने की सुझाते।
शब्द मन के द्विग हैं होते।
अपनी आँखों से दिखाते।
ज्ञान अमृत को पिलाकर।
प्यास मन की वो बुझाते।
अपना अनुभव शिष्य को दे।
ज़िंदगी उसकी सजाते।
द्रोण जैसे गुरु धरापर।
इक धनुर्धर नित बनाते।
भाग्यशाली हूँ मिले दो।
एक गुरु तो सब ही पाते।-
मोहब्बत का तो पता नहीं
पर हां जहां प्रेम होता है..
वहां आनंद आनंद में ओर
ईश्वर का ज़रूर निवास होता है।-
ज्ञान ही मित्र है,
ज्ञान ही संगी साथी।
ज्ञान रहे तो भ्रम मिट जाते,
पुण्य ज्ञान की थाती।
ज्ञान सूर्य सा, ज्ञान सोम है,
ज्ञान से है उजियाला।
ज्ञान रहे तो मिट जाता है
अज्ञान का अंधियाला।
ज्ञान बांटे ही बढ़े,
ज्ञान सम्पदा अनंत।
अज्ञान को ज्ञान मिले,
तो मिल जाते भगवंत।-
शाखाएं उसकी बड़ी - बड़ी , पत्तो से हरा - भरा है,
ज्ञान ऐसी चिड़ियां है, विशाल पेड़ के जैसे वो खड़ा है,
जिस - जिस ने इसको पढ़ा है।-
शौर्य दो माँ ज्ञान दो माँ,
स्नेह का वरदान दो माँ..!
दो अमिट प्रतिमान दो माँ,
प्रेम का विज्ञान दो माँ..!
कष्ट और व्याधि हरो माँ,
शांति दो विश्राम दो माँ..!
यश हो जीवन में स्वतंत्र के,
दो यही वरदान दो माँ..!
दो मुक्ति इस आवागमन से,
मोक्ष का तुम धाम दो माँ..!
भगवती सुन लो मेरी भी,
दो अभय का दान दो माँ..!
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इस अखंड ब्रम्हांड में कोई भी सर्वज्ञाता अभी तक नहीं जन्मा जो सब कुछ जानता हो।
हम सभी सिर्फ कुछ जानते हैं।
अगर हम सभी उसे मिला लें तब हम बहुत कुछ जान पाएंगे। लेकिन तब भी वह सब कुछ नहीं होगा और फिर भी हम अपने ज्ञान को बांटते क्यों नहीं?
और इच्छा रखते हैं सब कुछ जानने की।!-