आज सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की लिखी कविता 'चाँदनी की पाँच परतें' पढ़ते हैं
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10 OCT 2020 AT 19:07
13 JUL 2020 AT 1:13
रात और दिन का फ़ासला है दोनों के दरमियाँ
सूरज रोज़ जलता है चाँदनी से मिलने के लिए-
5 JUL 2020 AT 0:59
चाँद की चाहत में तारों को भूल गया हूँ मैं
चाँदनी तो मिल गई पर ख़्वाब पूरे ना हुए-
29 JAN 2019 AT 22:15
रात का शौकीन हूँ, मैं चाँदनी पाले रखता हूँ
कोई और ना देख ले, सामने उजाले रखता हूँ।-
25 FEB 2018 AT 16:37
आसमान में चाँद निकलता था,
धरती पर चाँदनी होती थी।
अब चाँद भी आसमान का और चाँदनी भी।-
16 JAN 2018 AT 23:14
चाँद सुबह होते ही रात की चाँदनी खो देता है
पत्तों पे पड़ी ओस की सुनहरी बूंदों में रो देता है।-
20 DEC 2020 AT 1:06
अभिमान करूँ स्वयं पर
या करूँ उस पर
उसका रूप
मेरे प्रेम से
अधिक प्रिय है मुझे
सूरज की चमक हूँ मैं
तो चाँद की चाँदनी है वो
क्रोध की गर्मी हूँ मैं
शांति की ठंड है वो
दर्द का भण्डार हूँ मैं
तो गीत की ध्वनि है वो
उसकी छुअन भर से
मेरा रोम-रोम
प्रज्वलित हो उठता है
अभिमान करूँ स्वयं पर
या करूँ उस पर
उसका प्रेम
मेरे प्रेम से
अधिक प्रिय है मुझे-