भारतीय साहित्य में पशु
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तूने जब से मुँह मोड़ा है
कलम से रिश्ता मैंने जोड़ा है
उड़ता फिरता हूँ सपनों की दुनिया में
शब्दों को बनाया मैंने घोड़ा है-
"What does the trainer do?"
"कुछ गधों को घोड़ा बनाते हैं और कुछ घोड़ों को गधा।"
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मन का घोड़ा दौड़ा जाये, क्यों बस तेरे पास रे
जाने कैसी भूख है इसकी, जाने कैसी प्यास रे
वश में करना चाहे जो भी, वश में कर ना पाये रे
जाये ये ना द्वार किसी के, चाहे हरी हो घास रे
तुमने किया है जादू इस पर, जपता तुम्हारा नाम रे
तुमने किया है वश में इसको, डाल प्रेम की रास रे
सुनता नहीं ये बात किसी की, मन की करता जाये रे
है ये अपने मन का मालिक, बस तेरा ही दास रे
तू राणा ये चेतक तेरा, बस तू इसको भाये रे
तेरे लिये ही अभी बची है, देह में इसके श्वास रे-
तुम भी सफर में, हम भी सफर में
ठहरने का कोई इंतज़ाम नहीं है
चलने से मुझको सुकून है मिलता
रुकने पर मिलता आराम नहीं है
यायावरी ही है मेरा पेशा
मुझे कोई दूजा काम नहीं है
जिस ओर से आती है तेरी ख़ुश्बू
उस ओर मेरा गाम नहीं है
ख़यालों के घोड़े पर मैं हूँ बैठा
हाथों में मेरी लगाम नहीं है
पीता पियाला अश्कों का हर पल
इश्क़ का मिलता कोई ज़ाम नहीं है
कैसे करूँ मैं दर्द का सौदा
लिखा इनपर कोई दाम नहीं है
कहाँ से हूँ आया, कहाँ है जाना
न कोई पता है, नाम नहीं है-
आकिये न मुझे में तो रेगिस्तान का दो पैर वाला घोड़ा हु
बस रोता नही पर अपने जज्बातो की ताकत से तगड़ा हु
सुखी धूप नंगे बदन पर क्यों ये मेरे काले बादल है
कुछ पाने की चाहत को वक्त के इंतजार पूरे कायल है
लंबी रेस दौड़कर सलवटे बाँधना ही मेरे ख्वाब है
शायद तभी मंजिले भी खड़ी मिलने को मुझे बेताब है
कुछ पाने कर जाने अभी थोड़ी सोहरते भी किराए दे रखी है
न चाहकर भी खुदगर्जियो की अमानते दुश्मनो के साये में रखी है
हर वक्त मेरे अंदर जलते अरमानो का धुआं आग बरसा रहा है
कुछ पा न लू दुनिया की बुलंदियों को मन खड़े पेर मुझे तरसा रहा है.!!-
बेंड वाले रिहर्सल में
लाइट वाले रास्ते मे
और
उतावला दूल्हा
घोड़े पर।।
😊अजब बारात😊-