अब लोगों के पास मन नहीं होता, एक अस्त-व्यस्त बगीचा होता है जिसमें वे खुद भी कहीं खड़े नहीं हो पाते।
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वो पगला,,तेरी याद में बादल बना रहा होगा ।
_रजनी
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सागर में मिलकर भी नदी
फडफड़ाती है ,
बेबस सी बार-बार आकर
किनारे से टकराती है,
भूल जाती है कि क्या
करना है,
सागर की हर 'हाँ' में बस
'हूं ' भरना है।-
"माँ" मिट्टी की तरह होती है उसके हिस्से में केवल संतान की जड़े आती है, बाकी फल, फूल, पत्ते, शाखें सब पेड़ के अपने होते है।
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जीवन तो हम अपने बचपन में जी चुके होते है
बाकी पचपन तक तो हम... अपनी गिरती , थकती , बिछड़ती सांसों को संभालते रहते है।-
ए पुष्प!
उग आते हो तुम
पत्थर में,कांटो में
काई में, घास में,
कोनों में,बगिया में
किनारे पे, टापू पे
फिर अपना घर ढूंढ़ लेते हो
किसी हथेली में,
श्मशान में ,मंदिर में
बाहों में, जूडे में
चरणों में, माथे पे
क्यों ऐसे हो तुम!
बड़े ‘निर्लज्ज’ हो तुम।-
जैसे बांसुरी में राग
जैसे चूल्हे में आग
जैसे मछली की जाग
जैसे चितवन की लाग
धीमे धीमे धीमे !!!-
रात ने समेटे है
सितारे अपने आंचल में...
कि डूबने से बच जाए एक चांद यहां...!-
प्रेम ”.....‘दर्पण’ की तरह होता है
इसमें जो देखता है
वो ही दर्पण का चेहरा बन जाता है।-