गुड़िया से ले कर गुड़िया
दे दी किसी गुड़िया को।
अब उस गुड़िया को
कोई गुड़िया पसन्द नहीं आती।-
गुड़िया सिर्फ गुड़िया के अंदर ही नहीं होती।
गुड्डों के अंदर भी होती है गुड़िया।-
एक छोटी सी गुड़िया है
लेकिन आफ़त की पुड़िया है।
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बड़े दूर शहर में रहती है लेकिन दूर रहकर भी हरदम अपने भाई के पास रहती है....
ये उड़ीसा की प्यारी बहन है मेरी जो मुझे अपने शहर के महान प्रेम कवि 'मानसिंह' कहती है...-
'जब एक बेटी जैसे-जैसे बड़ी होती जाती हैं तो वो धीरे-धीरे सबको बोझ लगने लगती हैं, लेकिन केवल एक माँ-बाप ही होते हैं जिनकी नजरों में वो बेटी हमेशा उनकी "प्यारी गुड़िया" ही होती हैं कोई "बोझ" नहीं।'
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वो कहते नहीं हम सुन लिया करते हैं
आँखों में आँखे डालके सारे ख्वाब पढ़ लिया करते हैं।
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जहाँ से शुरू किया था सफर फिर वहीं खड़े हो गए,
अजनबी थे लो फिर अजनबी हो गए।-
मेरे रोने पे खुद रो जाए ऐसी हो तुम
मेरे हँसने में खुद खुश हो जाए ऐसी हो तुम
नाराज़ होने पे खुद मान जाए ऐसी हो तुम
क्या दु तोहफे में गुड्डा तुमको मेरी गुड़िया
रोते बच्चे के चहरे पे खिल-खिलाती मुस्कुराहट बन जाओ ऐसी हो तुम
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