साहब हम गुज्जर है छोटी छोटी
बातों पर हाथ नहीं जोड़ा करते
और फन कुचलने का हुनर भी रखते हैं
'साँपो' के डर से जंगल नई छोड़ा करते-
कभी राष्ट्रधर्म में सम्राट तो कभी नीतिधर्म में सरदार
सदा गुर्जरों ने भारत को एक सूत्र में बांधकर रखा है
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तू कर के तो देख! ज़रा
गुर्जर की दोस्ती दमदार हैं।
ओर जन्मो जन्म तक ना टुटे
ऐसा हमारा प्यार हैं।
ओर अपने मान के लिये
गुर्जर जंग करने को तैयार हैं।
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जमींदारो सा रौब हैं। हमारा।
तू बोल तो सही काम क्या हैं तूम्हारा।
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वचन किसी के तोडा़ नही करते।
गुर्जर अपने वचन से मुहँ मोडां नहीं करते।
किया नहीं मेने कोई जाति का बखान।
पर ये हैं असली गुर्जर की पहचान।
गुरूर हमें किसी बात का नहीं।
जो इंसान हक की बात
करें वो हमारे लिये सही।
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ख़ुशी तो वो है.. मेरी
मेरी दिल ए जान फिर चाहे
बेपनाह ख़ुशी हो पर उसके जैसी कहां ।
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मैने उसे गवा दिया~
अब वो सबसे यही कहता है। खाश में ये बेवकूफियां ना करता ,अब वो सबसे यही कहता है। ख़ास में उसको उसी तरह चाह लेता ,अब वो सबसे यही कहता है। ख़ास में उसके प्यार को यू नजरअंदाज नहीं करता, वो सबसे उही कहता है,मैने उसको गवा दिया ।वो सबसे युही कहता है।-
सुबह ही ना हो उस दिन की,,
जब तुम मिलना चाहो,,,
ओर हम जिस्म छोड़ चुके हों-
🙏🙏 मृत्युभोज🙏🙏
पति के चिर वियोग में, व्याकुल युवती रोती ।
बड़े चाव से पंगत खाते, तुम्हें पीड़ा क्यों नहीं होती ।।
चला गया संसार छोड़कर, जिनका पालनहारा ।
बड़ा चेतनाहीन जहां पर, वज्रपात दे मारा ।।
मरने वालों के प्रति, अपना व्यवहार निभावों ।
धर्म यहीं कहता है, सज्जनों मृत्युभोज मत खाओ ।।
खुद भूखे रहकर भी परिजन, तेरहवां तुम्हें खिलाते ।
अंधी परम्परा के पीछे, जीते जी मर जाते ।।
मरने वाला कभी नहीं आता, तुम करना छोड़ों ढ़ोंग ।
नुक्ता प्रथा कुरीति सज्जनों, बहुत बहुत यह रोग ।।
जीते जागते माता-पिता की, सेवा कर दिखलावों
धर्म यहीं कहता है, सज्जनों..................….।।
इस कुरीति के उन्मूलन का साहस कर दिखलावों ।
धर्म यहीं कहता हैं, सज्जनों मृत्युभोज मत खाओं ।।
-"बी.जी.कसाणा"
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Khuda kare unhe yaad meri itni aaye...
Piye chai wo or khyal meri chai ke aaye 😁😂😅😍😘😋-
गुज्जर गुर्जर लिखना किसी एक जाति विशेष को इंगित करना नही,
बल्कि पहचान संस्कृती रहन सहन भाषा शैली को इंगित करना है-