तेरे......!
दिए हुए कलम, तौफे में, हमने उसे,
आज भी बडे़, खैरियत से रखा है।
स्याही........!
खत्म हो गई है उसकी, मगर, हमने
उसे,भरी स्याही वाले, कलमों से भी
ज्यादा, दर्जा दे रखा है।-
तुम्हें होना है मुझसे जुदा,
अच्छा,ठीक है चल अलविदा।
मुझसे बिछड़ के वो खुश है,
ये बात मैं नहीं मानता खुदा।
मैं जानता हूं बस अपनी मां को,
मैं तुम्हें भी नहीं जानता खुदा।
रिश्तों की कद्र हूं मैं करता,
अब क्या यहां भी देखूं फायदा।
अपने मेरे पूछ रहे थे,हुआ क्या है गौरव, ये तो बता,
जो बता दी परेशानी तो, कहने लगे कम से कम खैरियत तो बता।
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अपनी खैरियत की झूठी खबर फैला दी है अब इस कदर,
खैरियत भी पूछती है हँसकर,
"कमबख्त मुझसे भी झूठ बोलेगा।"-
तू जहाँ रहे जिसके साथ रहे
खुश रहे यही दिल दुआ करे,
ऐ! मेरे मीत वो इबादत ही क्या
जो तेरे खैरियत में रहा ना करे।-
आशिकों से खैरियत न पूछिये ज़नाब,
इनके मर्ज का तो ख़ुदा ही गवाह हैं !!-
वक़्त वक़्त की बात है जनाब,
खैरियत वही पूछता हैं जिसे फ़िक्र हो,
नहीं तो बिना मतलब के लोग देखते भी नहीं।-
अपना ख्याल खुद रखा करो दोस्तों,
लोग खैरियत पूछेंगे तो उम्मीदें लेकर आएंगे |-
चाहे जिस मर्ज़ से ग़ुज़र रहे हों
कोई हाल पूछे ;
तो ठीक बताना ही पड़ता है ..!-