बह निकले कामुक रस धारा छनक छनक पायल बाजे
धुन बन जाए खुद से ही जब गोरी मन माफिक साजे
कुछ दिन तो वीरान लगेगी गली शहर वह मोड़ भी
हम किसका इंतज़ार करेंगे हुस्न जो इतना मन को छाजे
मेरी चाहतें कहां तक गयीं ख्वाबों में क्या सजा डाला
सहलाने की रही तमन्ना लगता खुद को बजा डाला
आहें तो बाहर तक जाए सिसकी धुन कामुक सजाएं
जब उंगलियों से सहलाएं लगे जानकर कोई हुस्न तरासे।-
हम कैसे न तड़पे बताओ हुस्न ऐसा देखकर
इतनी पतली कमर पर लिखते हैं जान सिहरकर
हमें लिखना ग्रंथ है तुम आ गयी सुबह हुस्न दिखा
इतने दिन बेजान गलियां सूना लगता था शहर
जब सुबह देखा हुई थोड़ी जलन फिर सोच लिया
इतने दिन कुछ हो सका न संग में बैठी हो जलकर
हमको तो बस हुस्न कामुक देखना जो दिख गया
अनछुई जवानी लगती कभी बोलना भी तड़प कर-
तिल है, उनके चेहरे पर,पहले कभी दिखा नही,
निशा जो छोड़े है लबों पे उसने,फिर मिटा नही।-
अपनी सार्थकता के प्रति इतने
अहम से ग्रसित है सभी
स्वयं की निर्थक्ता पर
थोड़ा तो प्रकाश डालिये न...-
तने हुए जोबन ऐसे मेरी जान
बहुत कामुक होगी,
नीचे से हाथ लगा मसलें
तो अपने बस में न होगी...
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लगता है तैयारी तुम करके रखी हो मेरी राही कोई आए, उठाया है नितंबों को कमबख्त दबाए...
फिर हर एक दफे में ऊपर से इतना नीचे जाए, हवा में उछल जाए जब जोर कसकर लगाए!
दंड माफिक होकर उद्दंड हो घर्षण प्रचंड हो, गरमी कुछ बदन की राही सी मन करे जनवरी की ठंड हो
मगर गीले हो रहे दोनों जिस्म ही पसीने में, कामुक रस की धार बहे मेहनत करके दोनों सो जाए!-
आग लगी है गीला है
तन बरसा है पानी,
आहें भरती दूर तक जाती ऐसा
लगे संतुष्ट हो रही है कामुक जवानी...
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कुछ नहीं बस है भरम संभोग की हों चाहतें,
टपक जाए कामुक रस छबि की दिखे जब सलवटें
कहाँ से शुरूआत हो तुम साथ हो वो रात हो,
बाहों में जब भरें तुमको बिलकुल भी न हों आहटें
भरे जोबन गोल भी हैं कड़े भी और कसे भी,
मेहनत तो ज्यादा ही होगी मगर जन्नती मिले मजे भी
अरे हम तैयार हैं तुम भी बेचैन हो, सुनो न कस के उठाना जले आग की जब जिस्म से लपटें!!!
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साड़ी विशेष रूप से बैकलेस ब्लाउज या डीप कट ब्लाउज के साथ सबसे सुंदर और कामुक ड्रेस है..!!
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तुम्हारे लिए कुछ,
बचा कर रखा है मैने ,
सोचती हूँ ...
तुम्हे दे दूँ आज।
तुम्हे पता है ना क्या ?
अरे वही
अपना ज़िस्म,
जिससे तुम खेलोगे।
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