दुखी है वो अब मुस्कुराए भी कैसे
ये आँसू किसी को दिखाए भी कैसे
मुक़द्दस नहीं है मोहब्बत किसी को
वो सपने सुहाने सजाए भी कैसे
गुज़ारिश करे किस के पीछे पड़े
ख़ुदा को वो अर्ज़ी लगाए भी कैसे
ये इमरोज़ आकर बना है दीवाना
गुज़ारे पलों को भुलाए भी कैसे
मुकम्मल कहानी हुई ही कहाँ थी
अधूरी कहानी सुनाए भी कैसे
हसीनों की आदत से पुरनूर होकर
हसीनो को दिल में बिठाए भी कैसे
जो 'आरिफ़' का होकर भी उसका नहीं है
उसे पास अब वो बुलाए भी कैसे-
आसान ख़्वाहिशें हैं आसान ज़िन्दगी है
बस इश्क़ और ग़म की पहचान ज़िन्दगी है
माज़ी नहीं सिखाता दुश्मन से बैर करना
बस चार दिन ही सबकी मेहमान ज़िन्दगी है
हर रोज़ कौन मुर्शिद तुझको यहाँ मिलेगा
अहबाब से ख़ुशी का बाग़ान ज़िन्दगी है
इमरोज़ आशिक़ी है फ़र्दा है आँसुओं का
हर ऐश ही हो अपना अरमान ज़िन्दगी है
इल्ज़ाम किस ख़ता का तुझको मिला है 'आरिफ़'
मजहूल है तू बिल्कुल ज़िंदान ज़िन्दगी है-
प्रीतम में बंधी,
साहिर में डूबी,
इमरोज़ को तलाशती है,
हर नुक्कड़ पे इक अमृता है,
अब कोई इमरोज़ नही आता,
'अमृता' रहना विकल्प होता,
अगर वो नही होती "औरत" ।।-
अकेले-अकेले गुज़ारे कई दिन
नहीं हैं अभी भी हमारे कई दिन
सुकूनत नहीं मिल रही है कहीं भी
तुम्हारे बिना भी पुकारे कई दिन
ये इमरोज़ भी कुछ बदल सा गया है
जो जीते हुए भी हैं हारे कई दिन
रक़ीबों की सुन कर ग़मों में न डूबो
ख़ुशी से भरे हैं तुम्हारे कई दिन
ख़सारा नहीं है मोहब्बत में लोगों
मोहब्बत तो बनती सहारे कई दिन
जो 'आरिफ़' की चाहत रही हो कभी भी
तो करना तभी तुम इशारे कई दिन-
दुखी है वो अब मुस्कुराए भी कैसे
ये आँसू किसी को दिखाए भी कैसे
मुक़द्दस नहीं है मोहब्बत किसी को
वो सपने सुहाने सजाए भी कैसे
गुज़ारिश करे किस के पीछे पड़े
ख़ुदा को वो अर्ज़ी लगाए भी कैसे
ये इमरोज़ आकर बना है दीवाना
गुज़ारे पलों को भुलाए भी कैसे
मुकम्मल कहानी हुई ही कहाँ थी
अधूरी कहानी सुनाए भी कैसे
हसीनों की आदत से पुरनूर होकर
हसीनो को दिल में बिठाए भी कैसे
जो 'आरिफ़' का होकर भी उसका नहीं है
उसे पास अब वो बुलाए भी कैसे-
ग़म-ए-इमरोज़ अब किस से कहें
दिल कहता है अब हम चुप ही रहें
जो वक़्त बीत गया उसे याद कर के
कब तक हम ख़ुद को परेशान करें
नई सुबह नई उम्मीद लेकर आती है
चलो इस दिन कुछ अच्छा काम करें-
मैं नहीं खोजता
तुम में अमृता
न ही खुद को
इमरोज़ बना पाऊँगा।
एक ही प्रेम कहानी
दो बार
अमर नहीं होती।-