इमरती या अमृति
अपने चटोरापन के कारण—
मुझे पसंद है
भाषा का सुन्दर और गर्मागर्म अपभ्रंश...
(अनुशीर्षक में पढ़ें)
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26 MAY 2022 AT 14:32
30 MAY 2020 AT 17:42
मेरी प्यारी फ्रेंड दगड़िया
हँसमुख जैसे फूली डलिया
सूख रही कांटों के जैसे
जब से पीती है बस दलिया
मनमर्जी की है ये गुड़िया
रहे चहकती सोन चिरैया
रहती है यह आसपास ही
कब गायब हो पता ना भइया
(आगे कैप्शन में भी है 👍)-
2 AUG 2020 AT 0:00
उलझनों की भी अपनी इक मिठास होती है
उलझी सी इमरती भी तो क्या स्वाद होती है
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