मैं भी अब लाचार हूँ,
तेरा ही बीमार हूँ,
तेरे प्यार में पागल हूँ,
तेरा ही कायल हूँ,
पढ़ाई लिखाई चौपट हुई,
काम से तूने दूर किया,
प्रेमी सा मुझसे जुड़ा तो,
अंधभक्त तेरा हुआ,
अब तो पीछा छोड़ दे,
काम से नाता जोड़ दे,
सुन एक इल्तिज़ा मेरी,
न छोड़े तो कोई काम वाला ही मोड़ दे।
जवाब के इंतज़ार में....-
कौन करता है अब तेरी बात पर यकीं,
अदावते रकीब हैं अब नहीं यार पर यकीं।
शहर क्या यूँ पत्थरों का बियाबान हुआ,
कौन करे अब आदमी की जात पर यकीं।
कैसा दर्द सिक्कों की खनक देती सुनाई,
न करना बगुला भगतों के साथ पर यकीं।
थम गया जलसा धनकुबेरों की कोठी का,
कर लिया बिन आवाज की लात पर यकीं।
शतरंज समझ खेलते हैं रिश्तों से सब यहाँ,
साहिबा,न करना औरों की औकात पर यकीं।
ज्योति धाकड़
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यकीनन दुनिया ने नहीं जाना होगा भरपूर उसकी पैदाइश पे साहेब!! कि.......
नरकटियागंज का वो नवजात इक रोज़ नोहर नूर होगा,सार्थक सिनेमा का।।
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बीते लम्हों को ठहरे पलों मैं जीने की साजिश करता हूँ ;
गांब को शहेर में लाने की कोशिश करता हूँ ;
जवानी में जवान होने का हिम्मत रखता हूँ ;
भाग -दौड़ भारी ज़िन्दगी से वक़्त की जेब काट कर,
घर की बूढ़ी दादी, छोटी बहन, मा और अपने 10/12 के कमरे (जहाँ बचपन बीता )को याद करता हूँ ;
बड़ा बेटा हूँ ना, बलिदान और साहस पालने का शौक रखता हूँ-
इश्क तेरे मज़दूर हो गए
गमों में कैसे चूर हो गए
रात ढलती है ख्वाबों में
इंतज़ार जाना होता है क्या तो
दुनिया में हम मशहूर हो गए
इश्क तेरे हम मज़दूर हो गए-
बस यूं ही कुछ अहसासों से जिन्दा हूं मैं
वरना तो एक घायल परिंदा हूं मैं-