सहर आंख न खुलेगी, ये सोचकर क्या शब में कोई सोया होगा
फूलों भरे शजर की सोच, क्या किसी ने बंजर जमीं में बीज बोया होगा
कैसे कह दें कि आज पिता की आंख भर आईं
ठोकर लगने से भी, क्या कोई पत्थर रोया होगा
कैसे बिन पंखों के, आसमां छूने की चाहत रखें
बिना चांदनी के भी, क्या कोई चाँद सोया होगा
कैसे न करें मेहनत, मंजिल को पाने की
क्या रगड़े बिना, सिर्फ पानी ने कोई दाग धोया होगा
तुम्हारी इजाजत के बिना, तुमसे मोहब्बत करें तो कैसे
बिन बदलियों के, क्या बारिश ने जमीं को भिगोया होगा
(सहर=सुबह, शब=साम)
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