वृत्त,विज्ञान और वो ÷
विषय-वस्तु कला विज्ञान रुचिकर निश्चित
ज्यामिति आकृतियाँ भी,
माँ ने उँगली पकड़ सीखा तो दी,
खेतों की बाड़ी का "आयत"
इक हद तक परिश्रम का चरम
पसीने की नमक था मरहम,
चोट सह्य थी अठखेलियों की,
चकला बेलन और रोटियाँ
कानों में लटकती कनौटियाँ
कलाईयों में कनक कड़ियाँ
पैरों में खनकती रजत बेडियाँ
सूरज,चंद्रमा की रूपहली आशाएँ
इनकी गोल आकृति का अवलोकन
स्वयं के विषय में वंचित होता रहा आलोडन
न लंबाई,ऊँचाई का क,ख,ग
एक "वृत्त" में हूँ,
एक दिव्य आलौकिक भामडंल में
स्वयं का प्रतिबिंब निहारती....?
मेरी वीतराग विज्ञान की श्वेताभ छवियाँ
19.12.2020
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जीवन का अभिन्न अंग असँख्य कौतुहल का सार है
बाहु-पेट-भुजा-मुख समर्पित होकर करते अविष्कार है,
तिमिर से द्वन्द करते सूर्य पुंज की भाँति स्वयं तपते है
सामर्थ्य-तेज़ से विज्ञान में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त करते है,
धैर्य की परिभाषा लिखते असफलताओं में भी मुस्कुराते
यद्यपि हटी विनोद भाव से विज्ञान में वह विजय पाते है,
मधुर-शांत-सौम्य उर महान व्यक्तित्व का परिचय बनते
ब्रम्हाण्ड से परिचित वैज्ञानिक विश्वकर्मा का प्रतिरूप होते है।
-Worst person
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भगवान और विज्ञान !!
एक का अस्तित्व भावनात्मक,,
एक का विचारात्मक_!!!
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विज्ञान सही है मान लिया पर वेद भी अपना गलत नहीं
एक बार पढ़ो तो पता चले हर बात सही है लिखा वही।
बदलते हुए इस पर्यावरण की आज तुम्हें जो फिक्र है
प्राचीन ग्रंथ और कई मंत्र में इन बातों का जिक्र है।
इस सृष्टि की सम्पूर्ण गाथा इन ग्रंथों में गढ़ा मिलेगा
भूत, वर्तमान ,भविष्य विश्व का इन ग्रंथो में पड़ा मिलेगा।
वेद-पुराण और ग्रंथों को महज धर्म से जोड़ना सही नहीं
विज्ञान मानना गलत नहीं पर अध्यात्म छोड़ना सही नहीं।-
क्यों त्यागकर अध्यात्म को..तू चाहता है खोजना बल;
भूलकर तू आज को क्यों देखना है चाहता कल...
मनुज तेरी मनुजता बस मनुज बनने में ही है;
क्यों प्रकृति को छेड़कर तू चाहता बनना प्रबल...
थम जा अभी भी समय है, मत कर धरा को और क्रोधित;
विधि के विधानों को समझ, मत कर इसे तू और पीड़ित....
विज्ञान तो साधन है बस, जो जीवन को कर देती सरल...
क्यों प्रकृति को छेड़कर तू चाहता बनना प्रबल....-
मैं सोते हुए आइंस्टीन हूँ
नींदे मेरी सापेक्षता (Relativity) है,
स्वप्न मेरा आकाशगंगा पर शोध है
मेरी कविताओं को पढ़ा नहीं जाना चाहिए,
वह जो सुन सकता है, तू नहीं लेगा
इन शब्दों के देह की धुकधुकी
धरती से आकाश तक गूंजती है,
E=mc sqr. E=mc sqr.-
विज्ञान आणि अध्यात्म हे एकत्र येऊ शकतात, अध्यात्म आणि धर्म हे एकत्र येऊ शकतात पण विज्ञान आणि धर्म हे कधीच एकत्र नाही येऊ शकत. कारण विज्ञान हे प्रश्न विचारण्याची मुभा देत आणि धर्मांमध्ये प्रश्न विचारला तर तो व्यक्ती पापी अथवा अधर्मी घोषित केला जातो.
विज्ञानात दर क्षणाला उत्क्रांती होत जाते आणि त्याच खुल्या मनाने स्वागत केलं जातं तर सगळेच धर्म हे "ठेविलें अनंते तैसेचि रहावे" या उक्तिवर चालतात.-