बाज़ार में आज कल सब्ज़ियों से ज़्यादा ,
लोगों की नियत ख़राब हो रही हैं |-
इन दिनों नहीं देखा लोगों को माँस खाते हुए
पता नहीं जानवर प्यारे हो गए या अपनी जान-
लोगों की प्रवृत्ति भी कितनी असमानता दर्शाता है,
जहाँ एक ओर मनुष्य सारे सांसारिक बंधन छोड़,
कंदराओं में जा एकांत समाधि में लीन हो जाता है,
वही दूसरी ओर क्षणिक सुर्खियों में आने के लिए,
कोई दुर्दांत आतंकवादी बनने से बाज़ नहीं आता है।-
यूँ तो गलियों में लाखों लोगों का आना-जाना हैं
प्यारे पलट कर देखें वो जो अपना दीवाना हैं
मुझे आँधी-तूफान दुःख-दर्द का पता नहीं चलता
मेरे चाहने वालों के दिल में मेरा ठिकाना है
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लोगों! मत पूछो मुझसे कि मेरी रज़ा क्या है
चलो आज बता ही दो
है अगर आदमी ख़ुदा, तो ख़ुदा क्या है-
उन लोगों को आज तक कोई भी नहीं पढ़ पाया
जिनकी आज तक कोई किताब नहीं छपी
और खुदा को प्यारे हो गये-
कुछ लोगों ने मुझसे पूछा तुम्हारा
"किताबों" से क्या "नाता" है,
मैं बोली बस इतना सा "नाता" है की
जो मेरे "अंदर चलता" है वो "लोगों" में बहुत "कम",
"किताबों" की "पंक्तियों" में "अधिक" मिल पाता है..!!
(:--स्तुति)-
चुपके से
नाम तेरे गुजार देंगे जिंदगी
लोगों को फिर बताएंगे, प्यार ऐसे भी होता है-
कोशिश जब भी की है वक्त के साथ चलने की
लोगों से सुनने को मिलता है बदल गया है तू-