बूंद बूंद बारिश के संग मैं उलझी यादों को सुलझा रही हूँ
डूब कर पानी के भीतर, हाँ मैं खुद को ही सुलझा रही हूँ
हर इक तकलीफ को सुनाने को पास मेरे अल्फाज नहीं है,
इसलिए लिख फटे कागजों पर ख्वाबों को सुलझा रही हूँ,
बंद दिल को कर और बंद मैं सजल आंखों को खोल रही हूँ,
कि होकर फना शून्यता भीतर, कोरे एहसासों को सुलझा रही हूँ,
बिस्तर पर पड़े सपनों को मैं पानी छिड़का के जगा रही हूँ,
कि शून्यप्रिया को भी कोसती शून्य, मैं शब्दों को सुलझा रही हूँ
कभी देखी हो क्या पिघलता मयंक सूरज के ऊष्मा से जयंती?
देख कर भी क्या करूंगी मैं, मैं चाहत को सुलझा रही हूँ,
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हमसे खेलती रही दुनिया,
ताश के पत्तों की तरह..!
जो जीता उसने भी फेंका,
जो हारा उसने भी फेंका..!!-
हर "घर" जब सजेगा
"दुल्हन" सा लगेगा...................…०
"रीत" का मुस्काना
"दीप" को जलाना………………………०
"जगमगाते" "दीप"
"नवज्योति" जलाना.......................०
"हंसी" "खुशी" से
"खुशियां" मनाना..........................०
बड़ों का "पैर" छूना
"आशीर्वाद" लेना...........................०
"आज" दीवाली
"अच्छे" से मनाना..........................०
लड्डू भगवान को
फिर सबको खिलाना........................०-
तेरा हुस्न एक जवाब,मेरा इश्क एक सवाल ही सही
तेरे मिलने कि ख़ुशी नही,तुझसे दुरी का मलाल ही सही
तू न जान हाल इस दिल का,कोई बात नही
तू नही जिंदगी मे तो तेरा ख़याल ही सही
दुनिया में तेरा हुस्न मेरी जां सलामत रहे
सदियों तलक जमीं पे तेरी कयामत रहे-
वो आवाज लगा के लोगो को यू बुला रही थी।
कुछ को भईया कुछ को दीदी यू मोहब्बत दिखा रही थी।
जब भीड़ बड़ी दरवाजे पर तब उनको थोड़ा डॉट रही थी।
पर लोग कुछ भी कहे मगर वो तो अपनी ड्यूटी निभा रही थी।-
दूर ले जाएगी हमको
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दूर ले जाएगी हमको
हमारी ज़िद्द
ये जानती हूं पर
पास है भी कौन यहां अपना
क्योंकि इस जहान में तो सब
लाख गुणों वालें और
अपनी समझदारी के साथ
अलग ही हैसियत में रहते हैं
जो शायद मेरे पास नहीं है
इन में कुछ भी
इसलिए जितना हों सकें
उतना दूर रहना सीख रहीं हूं
सारी दुनिया को
भुला कर
हां मैं थोड़ी मतलबी बन रही हूं
खुद में जो रहतीं हूं-
शायद बन गया है इस जहां का रिवाज ही यही
जो लगाता पहले दिल बाद मे ठुकरा देता है वही।-
सृष्टि के प्रारंभ से जो
जारी है संघर्ष
मान्यता,पद प्रतिष्ठा
के लिए,आज भी जीवित
परंतु हो भयंकर
निगल जाने को
आ रही काल प्रचंड रूप लिए
स्वतः त्याग नहीं सकते
न कर सकते हो अस्तित्व नाश
हो सकता है
तीव्र हो या
फिर तिव्रतम
सृष्टि का पतन !!-
कहा जो मैं ने गया ख़त से हाए तेरा हुस्न
तो हँस के मुझ को कहा पश्म से गया तो गया-